Nitin Singh   (nityn)
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अभी तो शुरुवात है, कुछ और लिखें कि ग़ज़ल हो जाए
Joined 17 March 2022


अभी तो शुरुवात है, कुछ और लिखें कि ग़ज़ल हो जाए
Joined 17 March 2022
9 JUL AT 8:51

मेरी फ़ितरत पे मुझे हमेशा नाज़ है,
नफ़रत हो इश्क़ हो, एक ही अंदाज़ है।

जिसने चाहा है, उसे दिल दिया है अक्सर,
ना कोई शर्त , ना ही कोई नियाज़ है।

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1 JUL AT 22:16

सब महफ़ूज़ है दिल के अंधेरों में,
सदियों से लंबा इंतज़ार तेरा।

हैं वीरानियाँ मेरी अपनी गली में,
मगर रौशनी हर बहार तेरा।

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1 JUL AT 0:15

ख़ुद को जलाकर, ख़ुद को बुझाऊ
अजीब सा शक्स हूँ, ये कैसे बताऊ

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26 JUN AT 22:26

किसी ने साथ जोड़ा, किसी ने नाता तोड़ा,
हर हाथ छू के भी, दिल से काफ़िर ही निकला।
वो बहता रहा तमाम रिश्तों के किनारों से,
ख़ुद को समेट कर बिखरता रहा — नदी की तरह।

ना ठहराव मिला, ना ही कोई किनारा,
जिसे भी पाया, उसने बहाव ही समझा हमारा।
हर बार उम्मीदें चट्टानों से टकरा के टूटती रहीं,
फिर भी नितिन मुस्कुराया — पानी की तरह।

न कोई ठिकाना, न कोई नाम रहा,
बस बहते रहे और औरों के लिए प्यास बनते रहे
पर क्या कोई जान पाया उस गहराई को
जो सतह नीचे हर रोज़ डूबती है —ख़ामोशी की तरह।

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25 JUN AT 22:29

दिल की बातें दिमाग़ से उलझ चुकी,
रिश्तों की गर्मी, शर्तों में सिमट चुकी।

पागल होने में अब सुकून है नितिन,
दुनिया अब समझदारों से भर चुकी।

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24 JUN AT 23:51

इक हाँ का इंतज़ार,

कुछ नहीं…बस सदियाँ गुज़र गईं,
तुमने कभी इंकार ही नहीं किया…

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23 JUN AT 22:43

हर तस्वीर में बस तेरा ही चेहरा नज़र आता है,
जाने किस तरह से तुझे एक बार देखा था।

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19 JUN AT 10:56

न कोई पढ़ सका मेरी रगों की जुबाँ,
किसे दूँ मैं आवाज़, कौन है हमसफ़र?
कुछ जख़्म लिखे हैं, कुछ बाकी मुकद्दर,
ये हाथों की नस, ये मैं, और ये मेरा नश्तर।।

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15 MAY AT 20:58

मुझे तेरा जाना, अब कबूल है,
तेरे बिना जीना अब मेरा उसूल है।
मोहब्बत अधूरी सही, पर असल थी,
तेरे बारे में सोचना अब फ़िज़ूल है।

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2 MAY AT 22:34

आंखो में बसर करना था,
सीने में तो घर करना था।

समंदर ही ठिकाना था,
लहरों पे सफर करना था।।

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