लम्हे जीते हैं मगर कुछ तो शराफत से अभी नज़रें मिलती है मगर कुछ तो नफ़ासत से अभी
शाम से सहर बदलती ये बताये कैसे सब्र की बांध दरकती ये ज़तायें कैसे ख़ामोशी से मगर बात को रखते है नजाकत से अभी लम्हे जीते हैं मगर कुछ तो शराफत से अभी
दिल में जो लौ सी है फिर उसको बुझाएं कैसे बेकली सीने में दफन ये उसको सुनाएं कैसे पन्ने रक्खे हैं मोहब्बत के हिफाजत से अभी लम्हे जीते है मगर कुछ तो शराफत से अभी