शाम होते ही सिर्फ सूरज ही नहीं डूबता डूबता है एक पुरा आदमी डूबती है उनकी इच्छाएं और मर जाते है उनके सपने जैसे मरती है समंदर में सैमन मछली अपने बच्चों को जन्म देकर।
मैं कोई हाड़-मांस का देह नहीं हूॅं, मैं तो जंगल का वारिस हूॅं! जंगल और वारिस मरते नहीं, मैं भी नहीं मरुंगा। जंगल के किसी कोने में पौंधा बनकर उग निकलूंगा।
!!! बंदूक के पेड़ !!! भगत ने जो बोये थे खेतों में बंदूक के पेड़ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ वो पेड़ अब जंगल बन गया है। वो जंगल अब मांग रहा है क्रांति अंग्रेजी हुकूमत के सामने नहीं बल्कि, देश कि पूंजीवादी, फासीवादी और जातिवादी ताकतों के खिलाफ! समय आ गया है जंगल में से, भगत कि बोई हुईं बंदूक निकालने का।