हमारा पैदा होना और मरना,
मातम बराबर है ।
हम पैदा होने और मरने पर,
बरसी नहीं मनाते ।।
- नीतिन शिंगरखीया-
लफ्जो को कागज पर लिख देता हूँ!♥
अब वक़्त आ गया है
कि आपसी रिश्ते का इक़बाल करें
और विचारों की लड़ाई
मच्छरदानी से बाहर निकलकर लड़ें
और प्रत्येक गिले की शर्म
सामने होकर झेलें
वक़्त आ गया है
कि अब उस लड़की को
जो प्रेमिका बनने से पहले ही
पत्नी बन गई, बहन कह दें
लहू के रिश्ते का व्याकरण बदलें
और मित्रों की नई पहचान करें
अपनी-अपनी रक्त की नदी को
तैरकर पार करें
सूर्य को बदनामी से बचाने के लिए
हो सके तो रात-भर
ख़ुद जलें।
- अवतार सिंह संधू " पाश "-
અંધારા ઓરડામાં ખુદને પુરીને,
હું ચોધાર આંસુડે રડ્યો છું.
નડ્યા તો છે મને હર કોઈ જીવનમાં,
ના હું ક્યારેય કોઈને નડ્યો છું.
પડ્યા રહેવું જ મંજૂર કર્યું ખુદને ખલ્વતમાં,
ના મેં ક્યારેય આમ દુઃખનું પ્રદર્શન કર્યુંતુ.
- નીતિન શીંગરખીયા
-
અનુભવની વાત કરું તો સાવ શૂન્ય છું દોસ્ત,
હિમ્મતની વાત કરું તો એ સો એ સો પ્રતિશત છે...
- નીતિન શીંગરખીયા-
।।। महाभिनिष्क्रमण ।।।
मैं भी सिद्धार्थ की तरह घर से निकल पड़ा था,
शांति कि खोज में, ज्ञान कि खोज में।
सोचा था मैं भी बैठूंगा सिद्धार्थ की जैसे,
पेड़ के नीचे मुझे भी ज्ञान मिलेगा,
बुद्धत्व प्राप्त होगा।
मगर पेट कि आग ने मेरे पूरे बदन में
आग लगा दि और इस आग को,
हवा दी पेड़ कि छाया ने।
पेट की आग ने ज्ञान की प्यास को भूला दिया।
मैं लौटा फिर घर की ओर।
घर पर मां को चिल्लाकर बोला रोटी बनाओ
भूख लगी है,
मां ने मेरी भूख और गुस्से को शांत कर दिया
रोटी के एक निवाले से।
रोटी का पहला निवाला पेट में पंहुचा तो
शांति मिली जैसे प्राप्त हुआ हो
बुद्धत्व
- नीतिन शिंगरखीया-
काले पुरुष को कहा गया कुरुप
उनकी काली चमड़ी को
जगह न दे पाया प्रेम।
वो बन गए किसी के घर के
जवाबदेह व्यक्ति
वो बन गए किसी मां का बेटा
पिता का पुत्र
बच्चे के चाचा लेकिन
वो नहीं बन पाए किसी प्रियतमा के
प्रेमी और प्रियतम।-
सैमन
शाम होते ही
सिर्फ सूरज ही नहीं डूबता
डूबता है एक पुरा आदमी
डूबती है उनकी इच्छाएं
और
मर जाते है उनके सपने
जैसे मरती है समंदर में सैमन मछली
अपने बच्चों को जन्म देकर।-
ये मनोमन चल रहा युद्ध
मुझे बुद्ध कि और ले जा रहा है
ये ख्वाब, ख्वाहिशें, उदासी
विफलता और विफलता का वियोग
मुझे सब-कुछ छोड़ने को मजबूर करता है
जैसे बुद्ध ने छोड़ा था
घर, महल और संसार!
- नीतिन शिंगरखीया-
ખોરડું જ નંઈ ખોળિયું પણ
ખંડેર હતું અમારું,
ઓજસ પાથરીને આંબેડકરે
જીવન અમારું દીપાવ્યું છે.
- નીતિન શીંગરખીયા-
એને ઓઢતા જ મને મારી મા સમી હૂંફ મળતી,
ધડકીમાં આજે પણ મારી માની જૂની સાડી સીવેલી છે...
- નીતિન શીંગરખીયા-