बाजुओं का जोर था, और लोग पीछे चल दिए।
बाजुओं का दम कम , वो मुसाफिर फिसल गए।
वो छोड़ के भीड़ साथी, हम भी अपना निकल गए ।
कुछ भूल गया वो दिन बड़े, कुछ की याद में हूं।
अब काफ़िले छोड़कर, खुद की तलाश में हूं।
वो अगर मगर वो झूठ सच, वो कहानी, खयाल वो वादे किस्से।
वो दिन रात, वो शाम सुबह, हैं जिन्दगी के कुछ पुराने हिस्से।
कल को कल में छोड़ कर मैं बस आज में हूं।
हवाएं वो मोड़कर,मैं खुद की तलाश में हूं।।
जीत हार के युद्ध में, हार कर मैं कई बार,
मैं फिर लड़ा, मैं फिर गिरा, फिर करता था प्रहार।
प्रकाश फिर विजयी हुआ, तिमिर का करके संहार।
किस्मत तू तो बेगम है, मैं बादशाह ताश में हूं।
बस सुबह की आस में हूं, मैं खुद की तलाश में हूं।।
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