Nitin Insa   (SoulsFlute)
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A toddler poet
Joined 6 July 2017


A toddler poet
Joined 6 July 2017
4 NOV 2021 AT 17:45

दीया, तेल और बाती
सब ही तो तैयार है
बाकि कुछ है तो बस
प्रभु का इंतज़ार है
कालिमा करेगी
लालिमा रूप धारण
रुकी घड़ी को उस ही
घड़ी का इंतज़ार है
कभी तो ये सब
खतम होगा
आखिर कब तक
नासूर जखम होगा
मानते हैं सृष्टि पर
बोझ अपार है
तुम लिए तो गोवर्धन भी
कनिष्ठ बराबर भार है। दीया...
तुमने अन्दर ही
आकाश दिखा दिया
दिये ने जैसे
रात्रि को प्रकाश दिखा दिया
अब पतंगे का भला
ओर कौन यार है
उल्लू को कैसे बताए
शमा से क्यूँ प्यार है। रुकी....

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18 OCT 2021 AT 0:42

कहर का चरम है, या यूं कहो ये अंत है
साँच पे आंच का, पहरा नही अनंत है
रात के आखिर पहर, सन्नाटा बेअन्त है
इतना सच कैसे पचे, मुद्दा ये ज्वलंत है

सच हो चला शांत, झूठ है कहकहा रहा
दुःशासन की जय हो, जयघोष है आ रहा
गदा-गांडीव व्यर्थ है, सुदर्शन कब आ रहा
उठो कृष्ण चीर का, छोर अंतिम जा रहा

तुम्ही न कहते थे, बाहुबल विकराल है
शतक की ओर बढ़ रहा, देखो शिशुपाल है
हे पतितपावन, बदलो समय की चाल है
अब तुम्हारे ही हवाले, सत्य की ये ढाल है

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8 OCT 2021 AT 21:23

Believe in your,
goodness to meet
your own eyes.
Believe in your,
courage to achieve
your endeavours.
Believe in your,
devote to solve
your turmoils.
Believe in your,
peace to piece
echo of foils.
Believe in your,
deeds to hamper
evil's eye

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5 SEP 2021 AT 13:32

माँ के लिए ममता शब्द तो बना, निष्ठुरता देखो पिता के लिए शब्दकोष भी मूक रहा

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18 JUN 2021 AT 19:26

इकट्ठा सब किया फिर
कुछ छूटा सा क्यूँ है
सब कुछ खुशनुमा
फिर ये रूठा सा क्यूँ है
सफर में तो है पर ये
समा घुटा सा क्यूँ है
सबके लिए हाज़िर
खुद से हटा सा क्यूँ है
तलाश घर में कर
बाहर छटपटा सा क्यूँ है

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6 MAY 2021 AT 10:31

कुदरत के लिए क्या दौलत
क्या राजा और रंक
इसकी चक्की देखे कर्म,
न भर सके कुर्सी भी दंभ
पहले न वार कभी करती है,
प्रतिक्रिया का इक्का रखती है
इसके धैर्य के आगे सब फेल है,
अपनी पे आए तो राफेल है
तूफान से पूर्व और अंत में
शांति इसकी दोनो अनंत हैं
सिकंदर भी इसे न जीत सका
मृत्यु को न अपनी सींच सका
क्या अभिमान की बात करते हो
रावण भी कुछ न जीत सका
टिकाकर पंडित होकर भी
वेदो से कुछ न सीख सका
प्राणों की कीमत मालूम हुई
जब प्राणवायु ही छूट गई
जब तक थी बेकार ही थी
अब निकली तो लंका लूट गई

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11 APR 2021 AT 12:45

मै नही दूध का धुला, पर
मेरा गुरु बिल्कुल पूरा है
चाँद में दाग है, पर
उसका दामन तो
पवित्रता की कसौटी है
सूर्य तो अनंत
गर्मी समेटे है, पर
उसकी शीत लावे को
राख कर रही है
समुन्दर तो खारा है, पर
उसका प्रेम काफी है
उसमे मिठास भरने को
ये प्रीत आज तो अंधभक्ति है, पर
ये "आज" की मोहताज़ कहाँ है
कल का पर्दा कल ही खुलेगा
ये विश्वास तो पल-पल है

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28 MAR 2021 AT 10:51

आओ सुने एक लोरी
सुलाएँगी मम्मी मोरी
कहानी भी सुनेंगे
तोतलापन तोलेंगे

हम यहाँ की रानी है
दिन पे हमारा ज़ोर है
हम सोएँ तो रात्रि
हम जगे तो भोर है

हमें तो बातें करनी है
सुननी कुछ कहनी है
सुनते-सुनते सोना है
सपनो में फिर खोना है

सुबह धूप निकलेगी
सनबाथ गुड़िया लेगी
रोशनी पड़ जाए तो
आँखें मीच वो लेगी

आओ सुने एक लोरी
सुलाएँगी मम्मी मोरी
चाँद-तारे सब सो गए
अब मै भी हूँ सोरी

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27 MAR 2021 AT 9:25

एक कलम को ओर क्या चाहिए
कलाम उन तक पहुँचे दुआ चाहिए
दवात की भी यही अर्ज़ रही होगी
अक्षर-ए-स्याही को निगाह चाहिए

पहुँचे पत्र वाहक तुम बनो या वो
बस यही एक इल्तिजा चाहिए
दिल की खबर दिलबर को हो
बस यही एक एतबार चाहिए

व्यस्तता में तुम भूले नही गए
उदयास्त में तुम्हारी छाँव चाहिए
एक कलम को ओर क्या चाहिए
इश्क़ टपके कलम से दुआ चाहिए

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5 MAR 2021 AT 21:57

गगन में तारे टिमटिमाते हैं
उनसे रूबरू हो शरमाते हैं
जो हवा का झोख़ा आता है
उन्ही की ख़ुशबू लाता है
ये कल-कल पानी बहता है
जैसे उन्ही की कहानी कहता है
पंछी जो गगन को चूमता है
उन्ही ही धुन में झूमता है
जो बादल लगते मतवाले हैं
पिए उनकी मय के प्याले हैं
मोर भी नृत्य जब करता है
उनके ही प्रेम में थिरकता है
कोयल जब सरगम गाती है
उनके कलमे को दोहराती है
शायर शब्दों को बुनता है
उनकी ही छवि को चुनता है
सब कुदरत ही रचती है
क़ादिर लई सज-धजती है

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