भगवान को भगवान समझता है बुज़दिल
हर जान को इक जान समझता है बुज़दिल
इन्सान को इन्सान समझता है बुज़दिल
बातों से अपनी मैं कभी देता नही धोखा
हाँ सच बोलता हूं कि बुज़दिल हूँ मैं
मैं वो नही जो वक़्त पे बस काम चला ले
जैसे भी बच सके अपनी जान बचा ले
अपनी गर्ज़ पे किसी से भी हाथ मिला ले
ओहदे के लिए गधे को भी बाप बना ले
मैं ढूंढता नही कभी भी ये मौका
हाँ सच बोलता हूं कि बुज़दिल हूँ मै
चाहता नही ख़ुद के लिए आला मुक़ाम लू
तुमको तकलीफ़ दे कर मैं ख़ुद आराम लू
इंसानियत को छोड़ू, फरेबों से काम लू
कुर्सी के लिए झुठ-मूठ राम- नाम लू
मैंने कभी अपने लिये ये ख़्वाब न देखा
हाँ सच बोलता हूँ कि बुज़दिल हूँ मैं
मैं वो नही जो रास्ते मे हाथ छोड़ दूं
वाबस्ता है जो मुझसे वो उम्मीद तोड़ दूं
जिसने यकीं किया है उसी को निचोड़ दूं
नसीब को तुम्हारे मैं अश्कों से जोड़ दूं
ऐसा नही हो सकता कभी मेरा तरीका
हाँ सच बोलता हूँ कि बुज़दिल हूँ मैं
- इक़बाल"मेंहदी"काज़मी
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