Jagdish
मैं स्वयं में ब्रह्माण्ड हुं, मैं हूं सनातनी मैं ही श्री राम हूं ।
मैं शालीन भी सुशील भी, गति भी में गतिशील भी ।
मैं रुद्र भी अविनाश भी, मैं श्याम भी कैलाश भी ।
मैं आरंभ भी प्रारंभ भी, मैं ही धर्म हूं धर्मेंद्र भी ।
तेरी आत्मा मेरा अंश है, मेरा क्रोध ही विध्वंस है ।
मैं कंश का संहार हूं, मैं अमर हूं निराकार हूं ।
रावण का नाश भी मैं , प्रह्लाद की आश भी मैं ।
वर्तमान भी भविष्य भी, दृश्य भी मैं अदृश्य भी ।
इस धरा का हूं केंद्र भी,मैं ही इंद्रजीत और जीतेंद्र भी ।
मैं ही इंद्र भी, अमरीश भी,मैं ही हूं जगत और जगदीश भी ।
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