नितिन १.६१८०   (नितिन "निहाल")
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Joined 1 October 2022


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हिज्र की जगह ले ली है तकल्लुफ ने
शायद वो हमसे अलग होने को है।
दिल बेचारा यादें लिए घूमता है
बैल जैसे घर का बोझा ढोने को है।
बयां करते करते रूंध गया है गला
आंख हैं भरी पलकें धोने को है।
नज़रों में ना दिखता है इश्क़ अब उनके
फिर रहा "निहाल" क्या ही खोने को है।

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जागे रात गुजारना बात ये अब मामूली हो गई है।
सोचता हूं कैसी आदत लगी है मजबूरी हो गई है।

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हम सह तो गए खंजर सीने में उतरते हुए।
वो ले गया जान हमारी झट से निकलते हुए।

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ज़िंदा रख दिल में थोड़ा सा एहसास
"निहाल" अभी मुर्दों का इलाज़ नहीं है।

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तोड़ दो टहनी मगर फिर से
एक नया जंगल उगाने के लिए।

खोद डालो चाहे पहाड़ की मिट्टी
धरती की आग बुझाने के लिए।

आएगा बादल बनकर सागर का पानी
तुम तैयार हुए रहना उसे समाने के लिए।

इतने रास्ते बुन दिए हमने अपने चारों ओर
कोई रास्ता ही बचा नहीं बचकर जाने के लिए।

वैसे कुछ ज्यादा नहीं बदलना तुम्हें खु़द में से "निहाल"
अपने काम की नीयत बदलना काफ़ी है धरती बचाने के लिए।

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उजड़ा हो जो रूख होता नहीं कोई काम का।
धरती पर लगता है ज्यों निशान कोई घाव का।
रहते हैं एहसानमंद आजकल तुम से बहुत
ये दिखाया करता है गुम हुए को रास्ता।

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उजड़ा हो जो रूख होता नहीं कोई काम का।
धरती पर लगता है ज्यों निशान कोई घाव का।
रहते हैं एहसानमंद आजकल तुम से बहुत
ये दिखाया करता है गुम हुए को रास्ता।

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बात ये नहीं कि हम में कोई फन नहीं है।
कुछ करने का लेकिन अभी हमारा मन नहीं है।

कहता है जमाना जिसे खुदा की नेमत बेशक
मगर असली करामात इसमें लगाए वक्त की है।

पहले रचना सीखो तुम ख़ुद को नए सिरे से
तस्वीर मिटाकर जो जेहन में छप गई है।

भगवान भरोसे बैठे रहते हैं डर कर
जिनकी नसों में बहता खून बर्फ़ बन गई है।

किसे मंज़िल तक ये ले जायेगी पता नहीं
आदमी की जान लकीरो पतरी में फस गई है।

कैसे मिले उनके खातिर धरती से आसमान
जिनमें नजरें ऊपर उठाने का रहा दम नहीं है।

तक़दीर भी रहती है बंद मुट्ठी में उनके "निहाल"
जिंदगी में तदबीर जिनकी आदत बन गई है।

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क्या सिर्फ़ 'सेक्सुअल प्रिफरेंस' और इंक्लिनेशन' समाज में एक 'जेंडर' को परिभाषित करके उसे सही जगह देने के लिए काफ़ी है?
क्या इस वर्ग की समाज में जिम्मेदारी निर्धारित नहीं होनी चाहिए?
क्योंकि समाज में हक़ फर्ज़ अदा करने का ईनाम बनकर आता है!

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अगर आपको लगता है कि मुझे बीते जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर पता है।
तब आपको वास्तव में एक बात पता नहीं कि यही जीवन की मूल समस्या है।

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