मैं चाहता हूँ तुम्हारे जीवन में कोई आए
जो तुम्हें सँभाल सके
बिल्कुल जैसे आँख से ढुल रहे आँसुओं को
गाल सँभालते हैं !!!-
मेरा depression, मेरा struggle, मेरा dukh, मेरी over thinking, मेरा broken heart, और मेरे failure होने का जख्म
सब कुछ
तुम्हें मेरी आँखों की गहराई में नहीं,
मेरे आँखों के नीचे पड़े काले घेरे में दिखेगा ।-
आप जिसे ज़िंदगी समझ रहे हैं
वो एक दिन नाटक की तरह ख़त्म हो जाएगा।
आपको खबर भी नहीं होगी और
आप किरदार से दर्शक हो जाएँगे।
तालियाँ नहीं बजेंगी क्यूँकि
तमाशा नहीं ज़िंदगी थी...
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गणित के सवालों से भी ज्यादा कठिन होता है यह सवाल -
"कैसे हो तुम?"
जिसका जवाब
हम हमेशा ही गलत देते हैं
लेकिन जब भी किसी अपने द्वारा यह सवाल पूछा जाता है तो
मन में भावनाओं की लहर सी दौड़ती हैं।
और चाहता हूँ उसे गले लगाकर कह सकें कि "दोस्त ठीक नहीं हूं मैं । "-
तुम्हारा हर अनकहा सुना मैंने,
मेरा हर कहा तुम अनसुना कर गए।-
Magar Ye lakeerein
Nafrat ne nahin
Iske andar rehne walo ki
Mohobbat ne kheenchi hain!
Ye baat is tarah
koi akhbaar likhta kyun nahin?
Hain agar Har Khabar ke do Pehlu
Tarazu beech me aakar tikta kyun nahin?
hai Agar sach ki sabko zarurat
Toh sach Bazar mein bikta kyun nahin?
Aur hai agar insaan azaad?
Toh Humein azaad dikhta kyun nahin?-