मेरी सोती पलकों में भी
सदा जागते रहे तुम।
कई ऐसे लम्हें रहे जब मैं भूल गयी खुद को,
एक पल नहीं ऐसा जब भूली हूँ
कि तुम्हें कितना पसन्द है
आसमान का गुलाबी हो जाना।
मन्दिर से घर लौटते बेख़याली में
कितनी ही बार अपना समझ
तुम्हारे घर का दरवाज़ा खट-खटा आई।
कितने अवसर आये कि पूजते हुए ईश्वर को
तुम्हारा कोई पसन्दीदा गीत गाने लगी।
तब-तब पीड़ाएँ समझता रहा संसार मेरे अश्रुओं को,
जब-जब मेरी आत्मा नृत्य करने लगी
पढ़कर कहीं नाम तुम्हारा।
कितने बसन्त बीते जब तुम्हारी अनुपस्थिति में
एक फूल नहीं खिला मेरे बगीचे में ,
और कभी तो पतझड़ भी मोगरे सा खिल उठा,
मेरे यह सोचते ही कि "तुम लौटोगे अवश्य"!
मैं वचन नहीं देती
कि तुम्हारी प्रतीक्षा करते हुए
ये मेरी आँखें अन्त तक बूझेंगी नहीं,
परंतु प्रतिज्ञा है प्रियतम!
ये देह जवाब दे दे फिर भी
देहरी पर रखे दीप में
मेरे प्राण सदैव जलते रहेंगे
तुम्हारी एक आहट की आस में।-
Insta - niti_writes
जब मैं होती हूँ सबसे करीब तुम्हारे
खुद को मीलों दूर पाती हूँ तुमसे
जब-जब जी भर निहारती तुम्हें
हथेलियाँ मेरे भाग्य की तब तब रिक्त ही लौटी हैं।
मेरे हाथ हमेशा तुम्हारी पीठ का ही
स्पर्श कर पाए,
परन्तु आँखों ने मेरी
तुम्हारे मन की सतह टटोली है।
प्रतीक्षाओं में तुम मेरे जीतने रहे
आलिंगन में कभी न रहे उतने।
नासमझ हैं वो जो कहते हैं
तुमसे मिलना ही तुम्हें पाना होगा।
ईश्वर तो मेरी प्रार्थनाओं में
कबका तुम्हारी आत्मा मेरे नाम कर चुका है।
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वो बनती थी जो बड़ी सयानी,
उससे आखिर यह कैसी भूल हुई ?
सपने थे महलों के जिसके,श्रद्धा उसकी,
एक अल्हड़ के चरणों की धूल हुई।
(शेष अनुशीर्षक में)-
तेरी बस एक आरज़ू, एक तेरी ख़्वाहिश लिये बैठे हैं,
बैठे हैं शराबियों में और गले तक आँसू पीए बैठे हैं।
तुझे बस चाँद पाने की है, क्यों चाहत मेरे जानाँ ?
देख कितने तारे, कबसे तेरी ओर निग़ाह किए बैठे हैं।
लोग कहते हैं भूल जाओ उन्हें जो बिछड़ गए हैं तुमसे,
पर वो हुए सिर्फ आँखों से ओझल,दिल में देखिए,बैठे हैं।
कोई बताओ इन नए रकीबों को जो फ़िरते मजनू बन,
हम तेरे इंतज़ार में पुरानी कई ज़िंदगानियाँ जीए बैठे हैं।
ख़ुदा तो रहना चाहे तुझमें ही हर पहर हर वक़्त,ऐ इंसान
नादान उसको ज़माने में अलग से कई मकाँ दिए बैठे हैं।
-
मैंने पत्र लिखे तुम्हें,
नहीं प्रेम की नहीं,
न ही विरह के,
प्रतीक्षाओं के पत्र।
पर तुम ही कहो,
मैं भेजूँ कैसे इन्हें तुम तक प्रिय?
मेरे हाथ स्वतः ही ठहर जाते हैं
लिफ़ाफ़ा जब तुम्हारा पता माँगता है
मैं हो जाती हूँ शून्य तब।
अपने स्वर्ग के पते पर,
अपने अश्रुओं का हिसाब कैसे भेजूँ।
प्रेम,सुख और शायद दुःख भी
बाँटा जा सकता है दो लोगों के बीच
परंतु बोलो प्रिय,
प्रतीक्षा कैसे बाँटोगे तुम मेरी?-
मैं नहीं जानती इस जीवन के बाद फिर कोई जीवन
है भी या नहीं,
ये कई जन्मों की बातें अगर सच्ची नहीं,
मैं डरती हूँ कि तुमसे मिल रही हूँ पहली बार
और आखरी बार शायद,
कि तुम मेरे जो न हो सके अभी तो फिर कभी न होगे,
कि फिर तुमसे किसी जीवन में मिलने की ये उम्मीद मेरी खोखली है शायद।
ये जीवन तुम्हारी स्मृतियों,
मेरी आशाओं में बीत जाए शायद,
तुमसे मिल न पाऊँ अभी और कभी भी नहीं।
पर मैं जानती हूँ मैं न रहूँ भले इस ज़िन्दगी के बाद फिर भी,
कोई होगा मुझसा फिर देखना,
जो चाहेगा किसी को जो होगा तुमसा।
मैं न रहूँ शायद तुम भी नहीं,
पर रहेगा ये प्रेम सदा।
तुमको शायद न देख पाऊँगी,
फिर न सोच पाऊँगी इसकी पीर बहुत है,
पर ये प्रेम अमर है तो तुम अमर हो,
ये प्रतीक्षा अमर है तो मैं भी।-
चाँद तो बुझा है फिर एक तारे ने ये आसमान सजाया है क्या?
सारा मोहल्ला जगमगा उठा,अरे वो खिड़की पे आया है क्या?
कई नैन देखे , कितने लब और बहुत से चेहरे देखे ख़ूबसूरत,
सब फीका तेरे आगे, तुझे ख़ुदा के भी ख़ुदा ने बनाया है क्या?
भूलूँ तुझे बड़ी मुश्किलों से फिर याद कर लूँ खुद ही पल में,
फासलों में भी तुझसे किसी ने ऐसा इश्क़ निभाया है क्या ?
आना महफ़िल में और एक नज़र मुझको देख लेना कभी यूँही
किसी और ने भी तुझे खुद के क़त्ल का तरीका बताया है क्या?
है बेहिसाब आसूँ, इतने ज़ख्म और बातें टूटे दिलों की फिर भी
शायर के सिवा किसी ने दर्द को भी यूँ सजा कर लुटाया है क्या?-
बैठी कबसे आस लगाए,
हाय! पिया मेरा ना आए।
बीती होली बीता सावन ,
वो जाने क्या बीते मन पर?
अश्रुओं ने हैं गाल भिगाए,
तरस प्रिय मुझपर ना खाए ,
बैठी कबसे आस लगाए,
हाय! पिया मेरा ना आए।
काजल छूटा , बिंदिया छूटी...
( अनुशीर्षक में )-
मैं अगले जनम क्या हो जाऊँ?
मैं हो जाऊँ वो फूल
जो तोड़ो बस तुम ही
मेरी खुशबू सूंघ लगा लो मुझे
अपनी शर्ट की जेब पर।
या हो जाऊँ मैं वो तालाब पड़ोस का
जिसमें घण्टो पाँव भिगोए
लिखते रहो तुम
कविताएँ, ग़ज़लें।
मैं हो भी सकती हूँ वो....
( शेष अनुशीर्षक में )-
बीज के संग
धरती को भी
फूटना पड़ता है
किसी पौधे के
उग आने के लिए।
वियोग में पीठ पर
पड़ जाती हैं दरारे
ईश्वर उन्हीं दरारों से
जन्मता है मनुष्य में।-