रात के दामन में आज यादों के साए को देखकर ,
ये रातें गुजारी है, मैंने अपनी आंखों की बारिश में भी कर !
ये बेहद सर्द रातें भी बिताई हैं , मैंने सिर्फ़ उनके लिए जाकर,
कभी चांद कभी चकोर तो कभी इन तारों को निहार कर !
अनजान कहती हूं आज भी खुद को उन्हें बेहद करीब से जानकर,
इश्क नहीं इबादत की थी, मैंने उनकी, उन्हें अपना खुदा मानकर !
ऐ गुजरे हुए लमहे तू एक बार फिर लौट आ और मुझसे बात कर ,
एक बार फिर नए किस्से छेड़ तू भी मेरी अंजुमन में बैठ कर !
आज बिखरी दर्द- ए -दिल की चादर की सारी सिलवटें समेटकर ,
काश ! आज फिर ढूंढ लूं मैं उस शख्स को अपने सारे बिखेर कर !
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