"दूर तो बहुत हैं वो मुझसे पर उनसे ज्यादा,
मेरे दिल ❣️ के करीब कोई और नही "-
🙏तमसो मा ज्योतिर्गमय🙏
🙌Hari bol 🙌
🇮🇳🇮�... read more
सुनो जाना ❣️
मेरे नाम के तो अधूरेपन को तो पूरा कर दिया आपने,
पर जाना ! मेरी जिंदगी के अधूरेपन का क्या ?-
सुनो जाना❣️
ये जो है तेरे मेरे दर्मियां...
मुझे नही पता ये नजदीकियां हैं या दूरियां ।
पर जान ! इस सवाल की कशमकश में,
कसम से सुकून-ए-दिल बहुत है हमे ।-
मैं अल्फ़ाज़ नहीं लिखती , एहसास लिखती हूं ❣️
मैं जिंदगी नहीं लिखती , जीने का राज़ लिखती हूं ❣️
मैं हर बात नहीं लिखती ,बस अपने जज्बात लिखती हूं ❣️
मैं खुद को नहीं लिखती , खुद के अंदाज़ लिखती हूं ❣️-
आज ज़िंदगी में पहली बार मेरे पापा ने ,
बेझिझक हो कर कुछ मांगा था मुझसे ।
मेरी तरक्की,मेरी बुलंदी, मेरे बेहतरीन मुकाम,
से ज्यादा आखिर उन्हें और क्या चाहिए था मुझसे ।-
ऊपरवाले का भी कितना अजीब करिश्मा है..
कहीं पर नूर बनकर बरसता है...
तो कहीं पर कहर...-
रात के दामन में आज यादों के साए को देखकर ,
ये रातें गुजारी है, मैंने अपनी आंखों की बारिश में भी कर !
ये बेहद सर्द रातें भी बिताई हैं , मैंने सिर्फ़ उनके लिए जाकर,
कभी चांद कभी चकोर तो कभी इन तारों को निहार कर !
अनजान कहती हूं आज भी खुद को उन्हें बेहद करीब से जानकर,
इश्क नहीं इबादत की थी, मैंने उनकी, उन्हें अपना खुदा मानकर !
ऐ गुजरे हुए लमहे तू एक बार फिर लौट आ और मुझसे बात कर ,
एक बार फिर नए किस्से छेड़ तू भी मेरी अंजुमन में बैठ कर !
आज बिखरी दर्द- ए -दिल की चादर की सारी सिलवटें समेटकर ,
काश ! आज फिर ढूंढ लूं मैं उस शख्स को अपने सारे बिखेर कर !-
सुनो! जाना ❣️ जो नाम दिया है हमने तुम्हे ,
फिर कभी अब तुम उसे गुमनाम मत करना !
जिस दिल ❣️पर कभी मेरा नाम लिखा था तुमने,
वो दिल अब फिर किसी और के नाम मत करना !-
जामाने वालों, जब मेरी नज़रें झुके तो तुम उसे क्या समझोगे ?
क्या तुम मेरी झुकी - झुकी नज़रों को सिर्फ़ मेरी हया समझोगे !
मेरी नजरें अगर झुक भी जाएं तो तुम उसे बस मेरी अदा समझोगे ?
सच बताना या फिर तुम उसे बस मेरी ' हां ' मेरी रज़ा समझोगे !
कितने ही मायने हैं नजरों को झुकाने के, ये सोचा कभी ?
तुम तो सिर्फ उसे बस अपने मतलब की "हाँ" समझोगे ।
तहजीब से जब मेरी नज़रे झुके तो उसे मेरा अदब समझना !
पर तुम 'बेअदब मनचले कहाँ ये मेरी पेचीदगियाँ समझोगे?
मदद माँगी थी हिचकिचा कर तुम्हे अपना अज़ीज़ समझकर !
पर तुम तो धनवान हो; मजबूरी की मदद को दया समझोगे?
अश्क पी कर रोज़ बिकी किसी की मां बहन सिर्फ़ निवाले के लिए !
पर मस्ती के लिए मयकशी वाले तुम कहां भला उसे मया समझोगे?-
हे वर्षा !क्यों कर रही हो इतनी गर्जनाहट, ये कैसा तुम में वेग है !
क्या तुम्हारी हर रौद्र ध्वनि में प्रलय का संदेश। है?
आज तुम्हारे हर उष्म कण में क्या यमराज का आदेश है ?
अरे! इस धरा को शीतल जो करती तुम तो अमर हो रागनी हो !
फिर आज होकर निरंकुश इतने वेग में क्यों बह रही हो ?
क्या मानव कृतयों से आहत हो रही तुम्हारी प्रकृति है ?
इसलिए मानव की मय की कर दी तुमने दुर्गति है ?
क्या आज मनुष्यों ने करदी दूषित तुम्हारी पावन संस्कृति है ?
हे वर्षा! क्यों कर रही हो इतनी गर्जनाहट,ये कैसा तुम में वेग है !
क्या तुम्हारी हर रौद्र ध्वनि में प्रलय का संदेश है ?-