सुनों न साहेब...
प्रेम एक सब्र है...सौदा नहीं...
तभी तो हर किसी से होता नहीं...-
सुनों न साहेब...
वो तंग थे हमसे...
हम तो उन्हें नाराज़ समझ रहे थे...-
सुनों न साहेब ...
उनका इश्क़ भी अंदाज़-ए-बारिश ठहरा...
कभी गुमसुम सी... तो कभी... बेपनाह बेपरवाह...-
सुनों न साहेब...
अब तो कर ली मैंने इबादत-ए-इश्क़ भी...
दुआ क़बूल करना या न करना उसकी मर्जी...-
सुनों न साहेब...
बड़ी दिलचस्प है उनकी यादों का सिलसिला...
कभी एक पल...कभी पल पल...तो कभी हर पल....-
सुनों न साहेब...
अजीब सी दोराहे पर खड़ी है ज़िंदगी...
आगे बढ़ता हूँ तो...
अपने छूट जायेंगे... पीछे मुड़ता हूँ तो प्यार...-
सुनों न साहेब...
बड़ी बेरहम है ये मिज़ाज-ए-इश्क़...
पहले मरना सिखाती है... फिर मर मर कर जीना...-
सुनों न साहेब...
सोच था, कभी मिलेंगे तो बतायेंगे किस्से प्यार के...
पर कभी मिल ही नही सका वो यार, जिसे बात सकें किस्से प्यार के...-
सुनों न साहेब...
सच कहते हैं लोग ...ज़िंदगी का क्या भरोसा...
भरोसा ही तो किया था...उसे ज़िंदगी समझ कर...-
सुनों न साहेब...
मसला सिर्फ़ दोस्ती का नहीं, फ़िक्र का भी है...
तभी तो, केवल तेरी ख़ैरियत माँगते हैं अपनी दुआओं में...-