हिज़ाब में अपना ये चेहरा छुपाना छोड़ दो
मुझसे मिलना हो तो ये बहाने बनाना छोड़ दो
कब तक दरमियाँ रखोगे नितेश फ़ासलों को
दिल मे लगी ये आग को तुम बुझाना छोड़ दो-
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मेरी शायरी का अपना एक अलग अंदाज हैं
स... read more
हिज़ाब में अपना ये चेहरा छुपाना छोड़ दो
मुझसे मिलना हो तो ये बहाने बनाना छोड़ दो
कब तक दरमियाँ रखोगे नितेश फ़ासलों को
दिल मे लगी ये आंग को तुम बुझाना छोड़ दो-
बिखरता रहा आशियाँ मेरी आँखों के सामने
चला न जोर कोई खुदा की बातों के सामने
बर्बाद तो होनी ही थी हस्ती एक रोज़ मेरी
दर्द सुनाया मैंने भी बहरे कानों के सामने
सब कुछ खो कर कुछ ऐसा लगा मुझको की
मैं आ गया हूँ लौटकर गहरी रातों के सामने
उजड़ी हुई ज़िन्दगी शायद इसी को कहते हैं
पड़े हुए थे कुछ शख़्स मयखानों के सामने
बिखर गए हौसलें उन गद्दारों के भी नितेश
ग़लती से जब वो आ गए जवानों के सामने-
जन्म लेते ही विधाता ने क्या लीला दिखाई
टूट गए जेल के ताले जब प्रगटे कृष्ण कन्हाई
सुध बुध भूली गोपियन, राधा भी दौड़ी आई
वृन्दावन आंगन में जब कान्हा ने बंसी बजाई
त्राहि त्राहि जब मचा कंस के अत्यचार से
करके वध कंस का जन की खुशियां लौटाई
कर्म पथ पर आगे बढ़,दिया अर्जुन को ज्ञान
अधर्म का करने नाश ,धर्म की लड़ी लड़ाई
हर पद का रखा मान, चाहे कष्ट सहे हज़ार
कर्म से महान बने इंसा, कृष्ण ने बात बताई-
कब तक बहे कान्हा इन नैनों से आंसू
इन अधरों की लाली अब सुख रही हैं
जीने की कोई वजह नज़र नहीं आती
इस ज़िस्म से जान अब छूट रही हैं
ज़िंदगी तबाह कर ली तेरे मोह में कान्हा
मेरी सांसे ही मुझसे अब छूट रही हैं
मिलन की कोई वज़ह नज़र नही आती
मेरी किस्मत मुझसे अब रुठ रही हैं-
1222 1222 1222 122
जरा सी रोशनी से ज़िन्दगी को जगमगा दे
मिरे साथी जरा नज़दीक आ कर अब वफ़ा दे-
कैसे बताये लोगों को पता अपने मक़ाम का
रहा न जो शख्स नितेश अब किसी काम का-
कलम का सूरज अब निकलना चाहिए
काले बादलों का साया पिघलना चाहिए
कब तक चापलूसी लिखेगी ये कलम
अब क़लम की तहरीर बदलना चाहिए
बात इतनी ख़री लिखी हो क़लम से
पढ़ने वाला हर शख़्स ठहरना चाहिए
बहे सत्य की धार जब इस क़लम से
हर बुरे शख़्स का दिल दहलना चाहिए
बनाये रख "नितेश" वज़ूद क़लम का
तेरी क़लम शोहरतो से चमकना चाहिए-
बारिश में भीगोगे जब कभी तुम मेरे संग में
आसमां भी सजेगा कौस-ए-कुज़ह के रंग में-
122 122 122 122
हमारी तरह तुम मिलो हर बशर से
शहद से लगे लोग जो थे जहर से
चढ़ा है नशा आजकल गांव पर भी
नया दौर आया यहां भी शहर से
सजी है लबों पर बहुत सी ग़ज़ल अब
मिली रोशनी ये ग़ज़ल को बहर से
न जाने मुझें कौन है याद करता
मुझें हिचकियां आ रही है सहर से
हवा दे रही है हवा प्यार को अब
बचा लो खुदा प्यार के इस कहर से
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