Nishu Sahu   (Nishu Sahu)
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खुद की खूबियों को पहचाने।
Joined 7 September 2022


खुद की खूबियों को पहचाने।
Joined 7 September 2022
16 MAR 2024 AT 1:10

अपनी ही कमजोरियां से लड़ती हूं मैं ,
अपनी कमजोरी से लड़ती हूं मैं ।
उठती हूं मैं गिरती हूं मैं ,
फिर हार कर बैठ जाती हूं मैं ।
सोचती हूं क्यों कर ना पाई , क्यों लड़ नहीं पाई,
क्यों धड़कनों की रफ्तार के आगे बढ पाई ।
एक कदम बढ़ाती हूं , दूजे कदम गिर जाती हूं ।
फिर कानों में गूंजती ध्वनि तू ! कर ना पाई ,
तू ! बोल ना पाई ।
अंगारों सी जलती हूं ,
खुद ही में घुट - घुट कर सकती हूं ।
क्या साहस की दीवार ऊंची हो गई है ,
या मेरा डर मुझे बंधे हुए हैं ।
मन की इन्ही कोतुहल से डरती हूं मैं,
अपनी ही खामियां से हर रोज लड़ती हूं मैं ।
प्रयास फिर भी जारी है ,
देखती हूं , आखिर कितनी बार गिरती हूं मैं ।
-- निशु साहू

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9 SEP 2022 AT 22:40

तनहाई!
कितना निर्मल ,
कितना कोमल ,
कितना एकांत सा है ।
खुद की गहराइयों में ,
जाने का जरिया है ।

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9 SEP 2022 AT 16:52

उठ जा ! अब तू जाग जा !
तेज कर अपनी धड़कनों की रफ्तार ,
अब तुझे लड़ना है ,
अभी तुझे बहुत कुछ करना है ।
उठ जा ! अब तू जाग जा !
हुआ बहुत आंसू बहाना ,
आंसू को तू अंगारे बना ,
अभी कितनी मंजिल पार करना है।
उठ जा ! अब तो जाग जा!
- नीशु साहू

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8 SEP 2022 AT 9:56

प्रिया इच्छा !
क्यों उड़ता फिरता है,
आसमान के ऊंचे - ऊंचे गगन में‌।
क्या नहीं जानता तू ,
बन्धे है हाथ जटिल बंधन में ।
क्यों घूमता फिरता है,
कल्पना के सुनहरे भवर में।
क्या नहीं जानता तू ,
जीवन का मूल्य असल में।
क्यों करता है शोर, छन भर के स्वप्न में,
क्या नहीं जानता तू ,
मुमकिन नहीं ये , वास्तविक जीवन में ।

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7 SEP 2022 AT 16:34

जागती मैं रात भर आंख फारे ,
हाय अपने निर्बलता के सहारे।
कि, दुनिया स्वप्न के जादू भवर में खो गई,
जागती मैं जीवन सत्य के सहारे।
यूं तो है रात बड़ी सुहानी,
पर, मैं बैठी गुत्थी सुलझा सुलझाने।
कि, रात आंधी सी हो गई है,
सुन रही हूं शांति इतनी,
टपकते बूंद जितनी।

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7 SEP 2022 AT 10:51

न चलना किसी के सहारे ,
हाथ छोड़ते ही, टूट जाओगे,
ना चलना किसी के कहने पर,
कठपुतली बन के रह जाओगे।

गिरकर स्वम उठना है,
अपनी राह खुद ही चुनना है।

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