संगत...
किसी का हश्र पर तो किसी का हालत पर सवाल है
सारे शहर में आजकल मेरी आदत पर सवाल है
जबसे तोड़कर बदिश कहीं से भाग आई हूं
मेरे वालिद भी हैं करते मेरी हद पर सवाल है
यूंही बस बैठ जाती हूं, शहर भर में कहीं भी अब
किसने कि मेरी ये गत, उसी गत पर सवाल है
बढ़ रहे जबसे मेरे ताल्लुक हैं मैयकदो से
महफिल में भी होते मेरी शिरकत पर सवाल है
किस राह निकली थी किस राह पर हूं अब
उठ रहे अब तो मेरे पथ - पथ पर सवाल है
यार हम भी अच्छे हुआ करते थे मुसाफिर कभी
बिगड़े हैं तेरे साथ तो तेरी 'संगत' पर सवाल है— % &-
लौटकर आएगा यह पैगाम देकर के
वो चला गया मुझसे मेरी शाम लेकर के ।
परेशान कर रखा है मेरे यारों ने मुझको
मुझे बुलातें हैं अब तेरा नाम लेकर के ।
मोहब्बत में ख़ुद लुटा हूं भर - भर के मैं
कोई क्या ही लूटेगा इक जाम देकर के ।
लेने को तो मैं भी ले सकता था उससे मगर
सुकूं तो नहीं मिलना था इंतकाम लेकर के ।
नज़र आया था कल फिर शहर में वो कहीं
मैं दूर से ही लौट आया सलाम कहकर के ।
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बैठ जाए गर कभी तो चलना भूल जाता है
वो जब भी मिलता है मिलना भूल जाता है
मैं देख सकता हूं उसको यूं नज़रंदाज़ करते
फिर सोच लेता हूं के पागल भूल जाता है ।
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बढ़ती हुई समझदारी इंसान को मोन की तरफ़ ले जाती है।
इसलिए मैं ना समझ ही ठीक हूं।-
आने को तो बहुत आए जिंदगी में।
तुम्हारी तरह कोई सुंदर कांड ना बन पाया।।-
तुम दौलत होते तो कब का बदल देती बैंक में।
तुम तो मोहब्बत हो जैसे हों ठीक हो।-
ख़यालों की भीड़ में सरकता हुआ वक्त़
तेरे ख्याल के सामने थम जाता है कान्हा❤️..!!
राधे राधे 🙏-
सर -ए- राह में ठोकर खाते रहते हैं
हम पागल हर हाल में मुस्कुराते रहते हैं
किसी के चले जाने पर आंसू रहने देना
लोगों का क्या है, आते जाते रहते हैं
नशे में यूं चलते देखा कल मैने उसको
जैसे ख़्वाब में खाब डगमगाते रहते हैं
तुम्हें भी नहीं अब शौक़ महफिलों का
हम भी नहीं जाते, लोग बुलाते रहते हैं
मैं ख़ाक हूं, अपने ही नशे में रहती हूं
लोग ख़ुद ही को मुझमें मिलाते रहते हूं
गलती हमारी ही है, गर बिखरा है वो
हम ही तो वो ख़्वाब सजाते रहते हैं
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जो अपना दर्द बता कर रोए वो कायर है
जो अपना दर्द लिख कर सुना दे वो शायर है-