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मुशाफ़िर अपनी जिंदगी की ........
लाड़ली कान्हा जी की.. राधे राधे 🙏🙏
भ... read more
मैं जानती हूं कि हमारे जीवन में कोई ना कोई काम जरूर है हम सब बहुत ज्यादा बिजी हैं बहुत ज्यादा व्यस्त हैं .................caption m jrur padhiye.
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कण कण में हरि का नूर समाया
कण कण व्याप्त प्रभु की माया
कहीं स्वर्णिम आभा की लाली
कहीं घना तमस कहीं उजियाली
गगन मध्य सविता की लालिमा
हरती जग जीवन की कालिमा
संचरित रूप रंग गंध लिए वात
धारे प्रकृति अनुपमेय पुष्प पात
क्या ये न ब्रह्म शक्ति का संकेत
क्यों चेतन नर हो रहा है अचेत।
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राह चलते..................
राह चलते गिर भी जाऊँ फिर संभल जाती हूं।
टूट कर परिस्थितियों से भी बिखर न पाती हूं।।
हौसले की बुलन्द प्राचीरें हिल नहीं पातीं हैं।
दुःखों की आंधियां टकरा कर लौट जाती हैं।।
इरादों में है मजबूती ललक है आगे बढ़ने की।
मिलेंगी मंजिलें इच्छा है नया कुछ गढ़ने की।।
कर्म की खड्ग से मैं भाग्य रेखाएं बनाऊंगी ।
विवश व लाचार होकर शीश नहीं झुकाऊंगी ।।
फौलाद हूं मैं रगों में रक्त नहीं दौड़ता लावा है।
मिलती है कार्य में खुशी नहीं होता पछतावा है।।
मैं तो ऐसी पत्थर हूं जो छेनी हथोड़े सहती हूं।
निकले तन से रक्त स्वेद पर उफ न कहती हूं।।
अकर्मण्यता की जंजीरें बांध मुझे न पाती हैं।
उत्साह की नदियों को शिलाएं सह न पाती हैं।।
भर करके विविध रंग मैं किस्मत को सजाऊंगी ।
करें लोग अनुकरण मेरा मैं ऐसी राह बनाऊंगी ।।-
आ चल फिरसे बच्चा बन जाते है।
अपनों के लिए सच्चा बन जाते है।
खेले उसी आँगन में क्यों न फिरसे।
छोड़ शहर अपने गाँव आ जाते है।
देख लिए बुराइयों का दलदल हमने।
चल देर ही सही अच्छा बन जाते है।
दिल में जो क्यों न कह दे एक दूजे से।
चल आ यारा अब अच्छा बन जाते है।
क्या करना यू तेरा मेरा करते करते।
चल हिसाब में थोड़ा कच्चा बन जाते है।-
क्षणभंगुर जीवन........
क्षणभंगुर जीवन अपना, किसपर गर्व करे प्राणी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
कौंन आया साथ तुम्हारे, कौंन साथ में जाएगा।
सबका साथ मिला यहीं, छोड़ यहीं पर जाएगा।
जीते जी के रिश्ते सब, फिर बना क्यों अभिमानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
जिनके पीछे दौड़ दौड़कर,जीवन तूने गंवा दिया।
निभा न सके संबंध वही, उनने तुझको भुला दिया।
निभा सका न रिश्ते हरि से,बना तू कैसा अज्ञानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
मोह ममता का जाल बिछा,प्रभु ने मति जकड़ी।
सुत दारा कंकर पत्थर पा,रहती है बुद्धि अकड़ी।
जीवन का अस्तित्व भूल, हरि सत्ता न पहचानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
अपने लिए पशु पक्षी जीते,प्रभु नाम को जपले।
सांसारिक भोग त्यागकर, गोविंद भक्ति में तपले।
तारणहार बनेंगे भव के, छोड़ दे अपनी मनमानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।-
रेगिस्तान भी हरे भरे हो जाते
जब हरि कृपा अमृत वर्षाते हैं
भर देते विविध वर्ण फूलों जैसे
कलियों को हँसाते मुस्काराते हैं
हिलोरें लेती हैं जीवन सरिताएं
निज पथ पै बढ़ी चली जाती हैं
रोक नहीं पातीं हैं भव बाधाएं
कृपा गोविन्द की मिल जाती हैं
हो अरमान पूरे खुशियां इतराती
भोर सी लालिमा तन भर जाती
प्रफुल्ल झंकृत होकर मन वीणा
भावी जीवन के मधु गीत गाती।
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*बरसने लगेगा सौहार्द रस*
बदलीं समय व परिस्थितियां
बदल गए हैं मानव के भाव
भाईचारा सौहार्द बदल गए
सभी ओर पाश्चात्य प्रभाव
जीवन के रंग ढंग बदल गए
बदला है लोगों का व्यवहार
नाते रिश्ते संबन्ध बदल गए
स्वार्थ वसीभूत बने व्यापार
जिजीविषा लगती बेईमानी
बाह्य दिखावा शोर सुहाना
नाम की खातिर हो बर्बादी
दौड़ रहे पर न दिखे मुहाना
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