क्षणभंगुर जीवन........
क्षणभंगुर जीवन अपना, किसपर गर्व करे प्राणी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
कौंन आया साथ तुम्हारे, कौंन साथ में जाएगा।
सबका साथ मिला यहीं, छोड़ यहीं पर जाएगा।
जीते जी के रिश्ते सब, फिर बना क्यों अभिमानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
जिनके पीछे दौड़ दौड़कर,जीवन तूने गंवा दिया।
निभा न सके संबंध वही, उनने तुझको भुला दिया।
निभा सका न रिश्ते हरि से,बना तू कैसा अज्ञानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
मोह ममता का जाल बिछा,प्रभु ने मति जकड़ी।
सुत दारा कंकर पत्थर पा,रहती है बुद्धि अकड़ी।
जीवन का अस्तित्व भूल, हरि सत्ता न पहचानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
अपने लिए पशु पक्षी जीते,प्रभु नाम को जपले।
सांसारिक भोग त्यागकर, गोविंद भक्ति में तपले।
तारणहार बनेंगे भव के, छोड़ दे अपनी मनमानी।
किसका है स्थायित्व यहां,काया तो आनी जानी।।
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