रीत है , या प्रीत है
ये जो रश्में- रिवाज़े...
कितनी शिद्दत,
कितना धैर्य है,,
ये आत्मओं का बंधन
तोड़ें नहीं टूटतें........
सबकुछ अर्पित,
सबकुछ समर्पित,
कह देने से क्या ?,
न कहने से क्या ?,,
अंतर्मन की बातें अंतर्मन जाने......!!
©निष्ठा तिवारी'निशि'
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नव्य अनुभूतियों का,कैसा यह साझा संगम |
बिन बांधे ही बंध रहें, कैसा है यह गठबंधन |
सहसा मिलकर नज़रे चुराती लरजती दृगें,,,,
मोहित सा खीचा चला जाता तेरी ओर मेरा मन |
©निष्ठा तिवारी'निशि' ✍️-
सुनों,
जब एक रोज़ लिखतें-लिखतें सारे शब्द ख़त्म हो जायेंगे ना,,तब भी बचा रह जायेगा वह शब्द जिसे कभी किसी ने ना लिखा होगा, ना किसी ने पढ़ा होगा,ना किसी ने किसी से कहा होगा । क्योंकि किसी को उस शब्द के विषय मे ज्ञात ही ना हो शायद,,क्योंकि शब्दकोष में उस शब्द का कोई वजूद ही ना हो ।
डर लगता है, जिस रोज़ ग़र वह शब्द ईज़ाद होगा, उस रोज़ इस जहां से कही सारे शब्द विलुप्त न हो जाये । इस तरह शब्दों का विलुप्तीकरण कहीं इस संसार को गहन मौन की ओर ना ले जाए ।
सबकुछ ख़त्म होने से बेहतर है, कुछ बचा रह जाना |क्योंकि कुछ न कुछ बचा रह जाना ज़िंदा रहने का प्रमाण है । जीवित है कुछ हमारे भीतर, तभी तो ये दुनिया इतनी खूबसूरत है | वर्ना मरी हुई संवेदनाओं के बोझ तले ये जीवन बोझिल और नीरस हो जायेगी |
इसलिए विलुप्तीकरण से बचाये रखने के लिए आवश्यक है ,कि कुछ शब्द हम संसारिक लोगों के समक्ष ना आए तो ही बेहतर होगा ।
तो क्या हुआ ,वह शब्द ब्रह्माण्ड में तो विद्यमान रहेगा हमेशा हमेशा के लिए |
©निष्ठा तिवारी'निशि'
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वक्त की बारिश में शब्द धूल जाया करते है ।
मरहम है वक्त गहरें घाव भर जाया करते है ।।
©निष्ठा तिवारी'निशि'-
मन की फुलवारी में रोज
एक कविता खिलती है ।
बिखरती जब भीनी ख़ुशबू
दिल को राहत देती है ।।
जब कोई सुंदर अनुभूति
हृदय में घर कर जाती है ।
कविता की शुरुआत तब
वहीं उसी वक़्त होती है ।।
उमड़ते घुमड़ते काले बादल
हृदय में तरंगे जगाती है ।
पहली बारिश की बूंदों सी
पुनः कविताएं बरसती है ।।
अनुरागी बूंदों को अंजुरी में
भर लेने की जब चाह जगती है।
प्रेमिल हृदय की आतुरता
कविता की पंक्तियों में झलकती है।।
हर पल हर एक साँस में
उनकी ही यादें महकती है ।
प्रतिबद्ध धड़कती साँसे
शब्दों की लड़ियाँ पिरोती है।।
©निष्ठा तिवारी'निशि'
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रास्तों से गुजरते हुए,
कभी सोचने पर मज़बूर होते है,,,
कि वाहन तेज़ी से भाग रहे है?,,,
या एक स्थान पर खड़े खड़े वृक्षे भाग रहे है??,,
इंसानों की बनाई मोटर कारें,,,
इंसानों के साथ किसी गंतव्य तक
पहुँचने का भ्रम पाले बस भग रहें है ।
इस बात से अनभिज्ञ,,,कि
इन्हें जाना कहाँ है ? , पहुँचना कहाँ है ?
बस भागें जा रहें है ,सोचकर कि,,,,
यहाँ ख़ुशी मिलेगी, वहाँ सुकून मिलेगा,,,,
सफ़लता हमारा वहाँ राह तक रही है,
बस किसी तरह पहुँचना है वहाँ ।
इस बात से बेखबर कि,,,,
भगते भागते बहुत कुछ पीछे छूट रहें है,
जहाँ से चलने की शुरुआत किये,
वो वृक्षे भी पीछे छूट चुकें है,,
शायद ,,,,,
और भी बहुत कुछ पीछे छूट चुका हो,
थककर जिस रोज़ ,,,,,
स्थिरता, ठहराव की चाहत होगी....
उस रोज़ ज्ञात होगा,,,,,
सब कुछ तो, जाने कब से पीछे छूट चुका है.... !!
©निष्ठा तिवारी'निशि'
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प्रार्थना,,,,, वो फूल है ।
जो ईश्वर को क़ुबूल है ।।
प्रार्थना वह शक्ति है ,जिससे
दूर होती हर विपत्ति ।
प्रार्थना एक भाव है,,,,
जहाँ, खुलते मन के द्वार ।
प्रार्थना मन का वह नमन है,,,,
जहाँ ,अर्पित होते श्रद्धा सुमन ।
प्रार्थना भावपूर्ण वह माध्यम है,,,
जहाँ, ईश्वर तक पहुँचता है मन ।
प्रार्थना वह भक्ति है,,जहाँ,,,,,
अर्जित होती ब्रह्मांड की सारी शक्ति ।
©निष्ठा तिवारी'निशि'-
एक उम्र है थमी सी फ़िर एक उम्र गुज़र जाएगी ।
महफ़िल फ़िर सजी है महफ़िल फिर बिखर जाएगी ।
किसी ने हैसियत की बात की किसी ने औक़ात की ,
किसे क्या मालूम वक्त किसकी कब कैसे निखर जाएगी ।
जनाज़े उठते बहुत देखें तभी झूठ में सच्चाई ढूंढ लेते है ,
सोच समझकर देखना आईना वरना रूह सिहर जाएगी ।
छोड़ दो उनके हाल पे नफ़रतें पालना कायरता होगी ,
जाने दो जहाँ जाना है मत देखों वो किधर जाएगी ।
दायरा पाबंदियाँ लगी थी जिन्हें तोड़ दी सारी बंदिशें ,
आज़ाद छोड़ दो परवाज़ लेकर परिंदा जिधर जाएगी ।
©निष्ठा तिवारी 'निशि'-
रमता है मन सिर्फ़ और सिर्फ़ राम में ।
ब्रह्मांड समाया इसी एक नाम में ।
घूम कर देख लिए सारी दुनिया,,,,
सुकून मिला केवल राम के धाम में ।
©निष्ठा तिवारी'निशि'-
सिया के राम आए है |
प्रभु श्री राम आए है |
जागे भाग्य अयोध्या वासियों के ,
मन हर्षाने सभी के राम आए है |
©निष्ठा तिवारी 'निशि'-