कुछ अल्फ़ाज़ और सपने अधूरे रह गए,
कुछ खो गये कुछ पास ही ठहर गये।
उम्मीद पे दुनिया कायम है बहुत बार सुना है,
तो अपने अल्फाजो और सपनों को फिर से जीने का सोचा है।
उड़ने की चाह में, चलना शुरू किया.
पंखो को पाने के लिए, खुद को प्रोत्साहन देना शुरू किया।
जब मालूम हुआ की, सफर अकेले ही करना है.
डर था और है.
क्योंकि अपनों के पास हो के भी
उनका साथ--- साथ हो के भी,
अपनों के लिए ही,
खुद का ही हाथ, हाथो में थाम के हिम्मत से आगे बढ़ना है।
उड़ान जब सफल होगी,
तब सबसे प्यारी मुस्कान भी,
मेरे अपनों की ही होगी. जानती हूं मैं ये...
- निशी अग्रवाल 😊🍀
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