Nishant Subhash   (© कलमकार)
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Joined 13 November 2017


Joined 13 November 2017
19 FEB 2022 AT 22:08

यहीं ज़माने का दस्तूर हैं,
जो अजीज़ हैं दिल को
वहीं नजरों से दूर हैं।
दिल भऱ गया हैं उसका हमसे,
और कहता है मजबूर हैं।।

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17 SEP 2018 AT 13:02

गुंता विचारांचा रोज नवा, रोजचाच जुना
जणू तुझ्या आठवणींच्या पाऊलखुणा।।
गुंता तुझ्याकडे परत येणाऱ्या वाटांचा,
तुझ्या विचारात रात्री च्या केलेल्या पहाटांचा।।
गुंता तुझ्या नजरेतील व्यक्त अव्यक्त शब्दाचा,
गुंता तुझ्या अन माझ्या प्रारब्धाचा ।।

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10 MAY 2021 AT 10:48

ये जहन में कैसे मोगरे की ख़ुशबू बिखरी हैं,
शायद......!!!
उसकी खुली ज़ुल्फों को छू के हवा गुजरी हैं।

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23 APR 2021 AT 21:36

तेरे मेरे इश्क़ का एक टुकड़ा पड़ा हैं दिल की संदूक मे,
जब भी पड़ती हैं तेरे यादों की रोशनी चमक उठता हैं।

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7 APR 2021 AT 10:29

तुज़से बस इतनी है तक़रार के जबसे बिछड़े है
खो गया हैं दिल का क़रार ।

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3 FEB 2021 AT 23:42

वो दिन अलग थे वो रात अलग थी, दरमियाँ जो थी तेरे मेरे वो बात अलग थी।
वो कम्बल में लिपटी सर्दियाँ अलग थी,वो छत पे बेमौसम बरसती बरसात अलग थी।
वो चंद लम्हों में एक जिंदगी जैसी तेरी मेरी हर एक मुलाकात अलग थी।

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4 DEC 2020 AT 11:38

होता पलटकर तो मैं तुम्हारे हुस्न के दो जाम पी लेता, पलभर के लिए ही सही एक और जिंदगी जी लेता।

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18 NOV 2020 AT 0:19


न जज़्बात मेरें समझें न मेरा दर्द महसूस किया

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13 SEP 2020 AT 11:05

लबों पे ख़ामोशी हैं तेरी पर, निगाहें शोर करती हैं।
कसक उठती है दिल मे जब तू पास से गुजरती हैं,
हुस्न है तेरा या महक़ इत्र की, जो घूल के सासों
में सीधा रूह मे उतरतीं हैं।

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26 JUN 2020 AT 18:18

तो हमदर्द था मेरा, पर...
दर्द भी बहोत उसी ने दिया है हमे।।

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