मैं तेरे जिक्र में भी नही,
देख तू मुझे आज भी,
लब्ज-लब्ज याद है ।-
" कि डोर से बाँधकर
मुझको अपने इश्क़ की
वो अपनी पहचान
अलग बनाने लगें हैं । "
सुना है
उसमे कुछ भी नही मेरे अक्स सा,
बस आईने में मुझसा नज़र आता हैं ।-
हम मिले थे उनसे,
कह के कि ये आखिरी मुलाकात है ।
देखिए सितम उनकी,
उनसे अब हर रोज मुलाकात है ।-
सुना है,
खोये हो लोग तो,
कई बार मिल भी जाते है,
तलाश करता रहा हू मै,
खुद की यू भटक कर ।
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