Nishant .   (Chaudhary.)
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Joined 2 January 2020


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5 JAN 2023 AT 14:55

कभी जब एक सर्द हवां का झोंका तेरे बदन को आके छुयेगा
उस वक़्त तुझे मेरे होने का एहसास होगा
में दूर कहीं किसी दरिया के किनारे से तेरे याद
में नज्म पढ़ रहा होऊंगा
वो नज्म ही हवा होके तुझ तक पहुुंचेगी
और तेरे आबरू में कुछ लम्हा गुजारकर वो
फिर तेरे चुभन का एहसास मुझ तक लायेगी
में ताउम्र उस हवा का एहसान मंद रहूँगा
और भी कई नज्म तेरे सजदे में रचता रहूँगा।

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28 OCT 2022 AT 22:43

में खुश नहीं हुँ आजकल
हाँ कुछ कमी सी लगती है अब हर दिन हर पल
कुछ यादें सताती हैं
कोई अपना याद आता है
जिंदगी आसान लगने लगी है अब
पर फिर भी खुश नहीं हूँ मे आजकल
वक्त काटे नहीं कटता
रात बरस सी लगती है
अब हर गढ़ी बहुत भारी सी लगती है
साँझ का पहर कुछ राहत देता है
जब ठंडी हवा देह छू के निकलती है
मुझे तुम्हारा स्पर्श तब याद आता है
पर हाँ हवा में वो महक नहीं जो तुममे हुआ करती थी
सायद इसीलिए खुश नहीं में आजकल।

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7 JUN 2022 AT 10:25

चलते हैं गिरते हैं, फिर उठते हैं।
जिम्मेदारियों वाले कदम ऐसे कहां रुकते हैं. 

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15 APR 2022 AT 14:13

तुमसे रूठकर तुमसे ही बात करने को जी करता है
दिल ही तो है मेरा फिर मोहब्ब्बत भी तो तुम्ही से करता है

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9 JAN 2022 AT 16:54

ये इश्क़ भी कमाल करता है
सरेराह् बवाल करता है
तुम जब मुझसे मिलने
निकलती हो अपने घर से
तुम्हारे घर का एक एक सख्श तुमसे सवाल करता है।

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6 OCT 2021 AT 13:13

कभी खुद से भी कुछ समझो न
में अगर न कह पाऊं तुमसे कुछ
तब भी मेरा दर्द समझो न
तुम केहती हो फ़िक्र है मेरी
तो फिर एक बार ज़ता भी दो न
में अगर हु बेपरवाह तो तुम्हीं
मेरी परवाह कर लो न
दोस्ती या प्रेम में क्या छोटा क्या बड़ा
अगर गलत में हु भी तो एक बार फिर से हाथ बढ़ा दो न
तुम केहती हो फ़िक्र है मेरी
तो फिर एक बार ज़ता भी दो न
अपना अपना सब कहते हैं
तुम भी जब कहती हो तो
एक बार अपनापन दिखा दो न
ज़िम्मेदारियों के बोझ में अक्सर
जब थक जाया करूँ तब
एक सहारा बनकर आ जाया करो न
गलती हो जाने पर मुझसे
बिना दो बार सोचे एक बार ही माफ कर दो न
तुम केहती हो फ़िक्र है मेरी............

-: Chaudhary

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16 SEP 2021 AT 21:04

तुम याद आते हो
जब तुम्हारि गली से गुजरते हैं
उस पल तुम्हे महसूस करते हैं
सायद तुम अपने बिस्तर पर किताबें पढ़ती होगी
या फिर तुम भी हमे याद करती होगी
उस पल एक पल भारी भारी सा लगता है
तुम्हे याद करना तब जरूरी सा लगने लगता है।
तुम फिर याद आते हो
जब उस कॉलेज से गुजरता हूँ
जहाँ तुम अक्सर दिख जाया करती थी
अपनी सहेलियों से छिपकर
मुझसे मिलने आया करती थी
तुम तब भी बहुत याद आते हो
जब चाय वाले भैया की
चाय मुझे अकेले पीनी पड़ती है
तब यादों की शक्कर से चाय
मिठी करनी पड़ती है
उठकर जाते हुए तुम्हारा हाथ थाम लेता था
अब खाली हाथ भरे दिल से उठ जाया करता हूँ
पर में अक्सर यहाँ आया करता हूँ
की कभी सायद तुम यहीं मेरा इंतज़ार करती मिलोगी
मेरी कल्पनाओं में तुम अक्सर मुझे मिल जाया करती हो
हकीकत होते ही तुम मुझसे बहुत दूर लगती हो
पर फिर भी तुम हर पल मुझे याद आते हो......






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12 MAY 2021 AT 21:09

बातें कम और झगड़े ज्यादा होने लगते हैं
रिश्ते जब पुराने होते है तो अक्सर टूटने लगते हैं।
बिन कहे सब समझने लगते हैं
लोग जब तन्हा होते है तो टूटने लगते हैं
एक आधी बात को खुद से पुरा करने लगते हैं
गलतफेहमियों के आंगन में एक नया बीज बोने लगते हैं
फिरसे मिल जाने की उम्मीद छोङकर
खुद ही नये फसाने बुनने लगते हैं
एक कदम खुद से न बढ़ाकर
किसी और के इंतज़ार में जीने लगते हैं।
संभल जाने लायक हालात पर भी
नासमझी की चादर ओढ़ने लगते हैं
रिश्ते जब पुराने होते है तो अक्सर टूटने लगते हैं।।


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21 MAR 2021 AT 12:52

में शब्द लिखता हूँ 
वो नज़्म हो जाती है
मेरी अधूरी कविता को 
वो बस छूकर पूरा कर जाती है
एक मासूम सी लड़की है
जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है। 

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13 MAR 2021 AT 23:31

ख्वाब मुमकिन और हर ख्वाहिश पूरी लगने लगती है
उससे मिलके ये दुनिया हसीन लगने लगती है।

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