अब तो " दर्जी भी मेरा नाप " लेते समय पूछ बैठा ???
तेरे अपने कुछ ज्यादा अपने हो रहे है ,
क्या " आस्तीन थोड़ी और लंबी " कर दूं !!-
अजीब " दास्तान ए जिंदगी " लिखी जा रही है
उप्पर वाले की कलम भी रुक - रुक के चल रही है-
कुछ पराए , कुछ अपने ,
मीठी यादें , अनगिनत सपने ,
सब धरे रह जातें है
एक हादसा बदल देता है , जीवन सबका
की दुनिया से जाने वाले ना जाने कहां चले जाते है
-
कुछ दिनों से मेंने नया कुछ " लिखा " नहीं
ये सच है कि मैं खुद से कुछ दिनों से " मिला " नहीं-
भरोसा , भी धुल गया रिश्तों की बरसात में ,
अब हर बरसात में मिट्टी ,पहले सी नहीं महकेगी..!!
अमित नि:शब्द...🖌️-
मेरी रफ़्तार इतनी भी ना थी ,
की तुम पकड़ ना पातें
हर बार मुझे ही बताना पड़ा की
मैं कहां पे हूं , ये सही थोड़ी ना है
उसपे ये दावा तुम्हारा
की तुम सब जानतें हो मेरे बारे में
अगर तुम जानतें हो तो क्या,
सही जानतें हो ,ये सही थोड़ी ना है !!-
उनके लहज़े से दिख गया
" अपनापन " उनका,
मैं " ग़लत-फ़हमी " में था
की वो मेरे अपने है !-
पसंद आ गये है
कुछ लोगों को हम ,
कुछ लोगों को ये बात,
पसंद नहीं आयी !-
बात अपनी उप्पर रखना ,
कोई गलत बात नहीं
मगर बात सिर्फ अपनी
ही रखना ये गलत है-
लगा रहे है ताकत अपनी , सच को झुठलाने में
जुग्नुओं के झुंड की तो सदा, "सूरज" से बगावत रही है
इक उम्र से यही रवायत रही है
कसूरवारों को बेकसूरों से शिकायत रही है-