निशा रामकुचे 'अविरल'   (निशा 'अविरल')
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Joined 1 April 2019


Joined 1 April 2019

प्रेम सब करते है।
जीवन में
कभी ना कभी
किसी ना किसी से
एक दफा या कई दफा
कभी बचपन से
कभी बुढ़ापे में भी
करते है प्रेम
सब करते है।
कोई सिर्फ प्रेम करते
और कोई प्रेम विवाह
फिर भी रोकते है
किसी दूसरे को
प्रेम करने से
मैंने भी रोका है
खुद को प्रेम करने से।।।

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सुनो!
तुम मिठास लेकर आना
मेरे जीवन में
चेहरे की चमक
बढ़ जायेगी मेरे
तुम्हारे साथ होने से
बिल्कुल
डार्क चॉकलेट की तरह


निशा_अविरल

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सुनो!
मेरे चाँदी जैसे
हो चुके बालों में
अपने कंपकपाते हाथों से
गजरा लगा दोगे क्या?

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सुनो!
मेरे गुलाब,
तुम छुपे रहना
किसी किताब में
जब मैं पन्ने पलटूंगी
तुम्हें हमेशा के लिए पा लुंगी

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बचपन से सिखाया था, अजनबियों से दूर रहना।
फिर एक दिन उसे एक अजनबी से ब्याह दिया गया।।।

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खड़ी उर्मिला
चौदह वर्षों तक
प्रेम की हद

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पहली बारिश
मन के आंगन में
आत्मा भीगी

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मैंने प्रेम का आगमन से पहले अवसान देखा है
बिखरता हर एक अरमान देखा है
झूठी है दुनिया की रवायत सारी
सच के पहलु में बैठे झूठा हर इंसान देखा है

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माना कि मौत गजब कर रही है।
मगर आदमी को सजग कर रही है।।
मिट गई है मजहब की दूरियां।
हृदय को इंसानियत से रजक कर रही है।।।

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पलकों से ढूलक कर
आते है कपोल पर
और तर कर देते है
दुपट्टा,कभी सिरहाना
ये अश्रु छलकने का
जैसे ढूंढ़ते हो बहाना
हृदय की पीड़ा को
पिघलाकर, दुःख को
गलाकर, लेे आते है
नयनों में
नयन भी सुर्ख लाल
से हो जाते है।
जैसे ज्वालामुखी
धधक रहा हो पृथ्वी के भीतर
राख उड़कर बिखरती है
सम्पूर्ण आवरण में
ऐसे ही उदासी छा जाती है
वातावरण में
गर्म लाल मलबा
फुटकर निकलता है गर्भ से
ऐसे ही उमड़ कर निकलते है
गर्म गर्म अश्रु नयनों से
हृदय की विशुद्ध पीड़ा को
गला कर भर देते है नयनों में
धीरे धीरे जम जाता है
लाल मलबा, हो जाता कठोर पत्थर
मैं भी इंतजार में हूं
धीरे धीरे पीड़ा
पिघल रही है, गल रही है।
और जम कर मेरा हृदय भी
हो जाएगा कठोर पत्थर।

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