पंख देकर मुझे,तेरना शिखा रहे हो.।
ए खुदा सब्र करने वालो की लकीरों मे इम्तिहान की कोई परिभाषा नही होती???
-निश-
इश्क़ तो अब रिवाज़ सा बन गया,
रिश्तेदारी निभाना दस्तुर हो गया..।
यहाँ हर गली मे राँझा की हीर ,
हर मोड पे मुमताज के ताज का फरेब हो गया..।
इस दिखावे की दुनिया, इतिहास को पन्नो मे नहीं
बल्कि उनको गीत बना दिया..।
राधा कृष्ण के प्रेम को अब रासलीला समझ लीया..।।
-निश
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प्रकृति बहाव है.. -ओशो
इस जहाँ मे है कुछ ऐसा जो स्थिर हो..?
आसमां का चाँद पुनम् से अमावस बदलते रहेते है..!
ये नदिया कहा कहा से होकर बेहेती रहती है..!
ये ऋतुये एक सी नहीं रहती..,
ये फूलो का खिलना, खेतो का सजना,
दिन से रात का होना,झरनो का यूँ बेहना..
हर वो चीज जो कुदरत ने नवाजी है,
सब मे परिवर्तन समान है!
हम इंसान उसी कुदरत की मेहर है, और यहाँ हर रिश्ता उस कुदरत की चाहत, तो आज हमने क्यों उसे बंधन बना दिया है..
वो क्यों आज़ाद नहीं..!??
गर उनमे परिवर्तन आये तो क्यूँ वो ग़लत हैं..??
ये सवाल सब के लिए..
-निश-
बहुत दुविधा है की मन बड़ा चंचल है..
और .....
तकलीफ ये है की जब सही जगह मन को ढाल ने की कोशिश की जाए तब वो बड़ा स्थिर है..!!
-निश-
बहुत सुने थे संसार की माया जाल के किस्से..
आज एक नाजुक सी डोर पे फसे मर्कटक की पीड़ा समझ आ रही है..
-निश-
पिंजरे मे पंछी उड़ने लगा हैं..
लगता है, मन के वहम वो खोने लगा है..!
आँसु भरी आँखे सुरमे सी चमकने लगी हैं..
युँही नया बहाना कोई, दिल को बहकाने लगा है..!
मन का मोर खुद को ठग ने लगा है..
सायद वो बुंद को बरसात समझने लगा है..!!
-निश
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કોણ કહે છે!!
ભુલો નાજુક વય મા જ થાય છે..??
તેર એ નાની અવસ્થા હોય છે.. ને'
ત્રીસે અઘરી વ્યવસ્થા હોય છે..
અવસ્થા સાથે વ્યવસ્થા કરવી સખત કસોટી હોય છે.
નિશ-
हे माधव..
मातृत्व को यशोदा बन के कुर्बान करना जरूरी है क्या..?
राधा की प्रीत हमेशा अधूरी रहे जरूरी है क्या..?
भक्त बन कर सबरी जैसा जीवनभर इंतज़ार करना जरूरी है क्या..?
अनुसूया सी शीला बन सती रहना जरूरी है क्या..?
"हेत" का ही युँ प्रेम बन कर निरमोहि बन जाना जरूरी है क्या..??
-निश-
ए बारिश की बूँदे तुझे एक गुजारिश करे क्या.. !
तु चाहे गरजले, आसमा मे युँ ही चमक ले..
पर जब भी जमी पर गिरना मेरे महबुब को छु कर बरसना.. तो तुझे गिरने का अफसोस ना होगा!!
-निश-
Never judge me with your oil stuffs, fire is hidden inside me.
-निश-