सोचती हूं कह दिया होता
जो अब कहना चाहती हूं
तुमसे हर जुड़े राज
इन पन्नो कों बताती हूं
बेवजह लगती हैं जब बातें
तो लिखकर मिटाती हूं
एक दफा हर रोज
इन उलझनों को दुहराती हूं
सोचती हूं बताऊ दिल का हाल
जानती हूं तुम नहीं समझोगे
तो मैं खुद को ही समझाती हूं
रोज़ आती हैं दिल की बात जुबां पर
पर फिर उलझनों में पड़कर
होंठो तक आती बात
दिल में ही दबाती हूं
आते हो तुम जब नज़रों के सामने
बेचैन सी हो जाती हूं
यूं जब पूछते हो तुम मेरा हाल
एक दफा फिर से तुझपे दिल हारती हूं
दिल को फुसलाकर, जज्बातों को झुठलाकर
ना कहते हुए हौले से मुस्कुराती हूं
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