एक आवाज....
जो सब पर असर कर गयी
हर मुस्कुराहट पर गम का बसर कर गयी
हाँ वो....
हर आवाज को जहर कर गयी
सब पर खुद का वो ऐसे पहर कर गयी
हाँ वो....
हर वक़्त को खुद की खबर कर गयी
सुना कर खुद की आवाज वो कहर कर गयी
हाँ वो....
सब के जीवन को ही बंजर कर गयी
कैसे वो खड़ी इमारतों को खंडर कर गयी
हाँ वो....
मेरे कानों से दिल का सफर कर गयी
क्यों वो खुद को सब नजरों में नजर कर गयी-
मैं हूँण तेरे शहर ते दूर
जा री हाँ...!
इक सांस तेरे नाम
दी ले के
हो के बस खुद नु मजबूर
जा री हाँ....!
छड़ के जान अपनी नु
कुछ इस तरह
तेरी यादा नु ले के
जा री हाँ...!
हाँ जी..! तेरी नाज़
तेरी नूर जा री हाँ..!-
मत भूलो पापा भी
पिता होते है..😊
वो भी एक माँ से जन्मे
उनका ही हिस्सा
होते हैं...🙏
Caption...👇👇-
मैं नहीं मानती पर क्यों कहते सभी की तुम्हारी मोहब्बत इतनी वफ़ादार नहीं..
मेरी नजरों में फिर समझदारों की समझदारी तुम्हारी तरह अभी समझदार नहीं-
तुम्हारे साथ
तो ख़ामोशी
में भी बात
हो जाती है
और फिर
तुम में,
तुम से,
तुम पर ही
दुनिया मेरी
पूरी हो
जाती है
❤️🤗-
गर यह तुम्हारी चाहत न होती मुझे ऐसे हासिल कभी
तो जो हुआ हासिल मुझे वो शामिल मुझमे कैसे होता
चढ़ा ये सुरूर भी तुम्हारा ऐसा मुझे न जाने कैसे होता
जो चढ़ा मेरे गुरुर का मगरूर न जाने फिर कैसे होता
एक हिस्सा मुस्कुराहट का तो जैसे-तैसे हां मुझमे होता
पर हुई पूरी ख़्वाहिश से मिली इस मोहब्बत सा न होता
तेरे पास न हो कर भी साथ होने का एहसास कैसे होता
मिले जो तुमसे हिम्मत का ये तूफान न जाने कैसे होता
"गर चाहत न होती"तो चराचर में चल सरल कैसे होता
जुड़े तुम्हारे अटूट प्रेम बंधन का पता भी मुझे कैसे होता
कैसे मेरी चाहत को मेरी जुबां पर विश्वास ऐसे होता
यूँ याद न बना तुम्हें,नाम लेते रहना मुझसे कैसे होता-
इस रात की ख़ामोशी में एक गूंजती हुई ख़ामोशी की सरगम बजती जा रही है
वही चेहरे पर यूँ लगा कर चेहरा दर्द छिपाने की मेरी ये आदत बढ़ती जा रही है
उस पर मेरी एक ख़्वाहिश सब ख़्वाहिशों से यूँ लड़ कर आगे बढ़ती जा रही है
और यूँ ही कुछ मेरी ख़्वाहिश देख ख़ामोशी मेरी मुझे बेजान कहती जा रही है
कुछ ख़ामोश तरह से ही मेरी स्वाभिमानी गूंज हर एक पर चढ़ती जा रही है
अपनों से मिली दुआओं से मेरी रुकावटो को एक रफ्तार मिलती जा रही है
इस रात की ख़ामोशी में कुछ बाते मुझे एक तीर की तरह ही चुभती जा रही है
लेकिन फिर भी ये ख़ामोशी बन कर एक दीवार की तरह यूँ बढ़ती जा रही है
ये एक साथ मेरे मेरी ख़ामोशी ही है जो मुझसे मेरी ही बाते कहती जा रही है
मेरी हर आह को हर दर्द हर ख़ामोशी को मेरे साथ सहती, समझती जा रही है
यहाँ मझबूर में हूँ जिससे मझबूरी मेरी इस ख़ामोशी की भी बढ़ती जा रही है
आंखों में पूरी एक ख़्वाहिश होने के दीदार की वो ललक और चढ़ती जा रही है-
!! सुनो माँ तुम्हें जन्नत कहुँ या कहुँ माँ!!
आज मुझे आपको लिख कर आपसे कुछ कहना है माँ
और कहते कहते बस आप मे ही खो जाना मुझे है माँ
क्यों सब लोग पापा की सूरत जो मुझ मे बताते है माँ
कहते ऐसा भी की आपकी सीरत मुझमें समाई है माँ
कैसे उन सब को मेरी हरकतों में पापा नजर आते है माँ
और कैसे वो सब मेरे व्यवहार में बस तुम्हें बताते है माँ
जो पापा ने किया वो तो मैंने कभी किया ही नहीं है माँ
जो आप (एक माँ) सहती है वो तो मैनें नहीं सहा है माँ
दुनिया में पापा के जैसा तो कोई दानी भी नही होता माँ
बच्चों की खुशी के लिए अपने सुख के बलिदानी होते माँ
और तुम्हारे जैसा तो यहाँ कोई ज्ञानी भी ज्ञानी ना है माँ
संस्कार तुम देती शिक्षा और ज्ञान देने की वरदानी हो माँ
पापा के लिए तो ना दिखी कहीं ज्यादा लिखी कहानी माँ
वहीं तुम्हारे तप की महिमा को वेदों में भी बखानी है माँ
मुझे दुनिया के इस बाजार में हर चीज बिकती दिखी माँ
हर चीज दिखी पर उनमें माँ पापा की छवि ना दिखी माँ
पापा की ही सूरत हूँ जो जुड़ी उस सूरत से जिंदगानी माँ
और ये तुम्हारी ही सीरत बनी तेरी ममता की दीवानी माँ
और क्या कहूँ में मुझ पर शिवशक्ति की ही कृपा हुई है माँ
शिवशक्ति ने आपसे और आपने उनसे मिलाया है मुझे माँ-
आज रे दिन री रवे घणी प्यास है
जो आवे भाई बहण रो त्यौहार खास है
और एक भाई yq पर भी घणा खास है🤗
तो भाई सा थाने रक्षा बंधन री घणी घणी बधाई
माँ भवानी थारो सगळो में माण बणा न राखे
थारे हिवड़ा री सारी कामणा पूरी करे
थाने जल्दी स्यु इति खुशी मिले
जीती जल्दी कीनि नि मिली हो
म्हने मारवाड़ी भाषा रो और ज्ञान कराता
रिज्यो जिकी मन्हे आवे कोणी..😅
Happy Raksha Bandhan
bhai saa...🍫🍫
keep smiling..😊
may god protect you always😊
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ये तुम्हारा नशा हर नशे से बड़ा है दूर रह इस नशे से मेरा जीवन अड़ा है
नही दिखता नशे में मदहोश हूँ जो कौन साथ कौन मेरे खिलाफ खड़ा है
ये उतर कर सांसो की सीढ़िया भुला दिल का मर्ज आंखों से छलक चढ़ा है
में नहीं करती कोई ऐसा नशा जिसे कर कोई तो मरा है कोई चित पड़ा है
मेरा यह नशा अनंत आकाश की तरह है यह ना उतरे कोई और ना चढ़ा है
यह बहते पवन सा जो ना किसीसे बांध मुझे अपने बन्धन में जकड़ चला है
नशा यह निर्मल जल की तरह जो मिले मुझे अंगारो पर उड़ेले भरा घड़ा है
ये नशा वतन की मिट्टी सा पास जो हर मुश्किलों में बन मेरा खास लड़ा है
नही आजमा सकता ऐसा कोई इंसान मुझे जो अपनी नियत से सड़ा पड़ा है
क्योंकि मालूम है उन्हें लत मेरे इस गहरे नशे की जो मेरी हर रूह से जड़ा है
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