Nisha Sharma   (Nisha Sharma✍️)
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Joined 8 February 2020


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Joined 8 February 2020
11 MAR 2021 AT 10:16

दृढ़ संकल्पित भाव ज़रूरी है।
जीवन विष को अमृत बनाने के लिए
डमरू वाले का साथ ज़रूरी है।

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25 FEB 2021 AT 9:22

आपके सब्र को
आपकी सहनशक्ति को
आपके वजूद को
आपकी हस्ती को

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23 FEB 2021 AT 11:02

चिंता इतनी करो कि काम हो जाए
इतनी नहीं कि ज़िंदगी तमाम हो जाए!

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7 FEB 2021 AT 13:07

सोचते ही रहोगे क्या वक़्त तो कभी रुकता नहीं,
तुम रुककर मेरे लिए इज़हार-ए-इश्क़ करोगे क्या!

अरसा हुआ इश्क में हैं पर मोहोब्बत अब तक नहीं मिली,
इश्क़ को ख़ुदा की नेमत समझ हमसे मोहोब्बत करोगे क्या!


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6 FEB 2021 AT 14:07

मिलने के लिये दूरी ज़रूरी है
अपनों से भाग कर जीना आसान नहीं
आनंद दोगुना है गर स्वजनों की मंज़ूरी है।

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4 FEB 2021 AT 13:43

किसानों का कंधा, विपक्ष की बंदूक !
भारत नहीं टूटेगा, सुन लो ये दो टूक !

कृषि बिल हथियार बना, Greta डालें फूट !
बना तमाशा India को, मज़े रही हैं लूट !

राहुल जी भोले बने और प्रियंका शातिर !
उपद्रवी पीड़ित लगे राजनीति की ख़ातिर !

खाली बैठों को मिला आंदोलन में काम !
ले किसान का नाम ये करें देश बदनाम !

लगती कोई कमी अगर, समझ के देखो बिल !
बात करो सरकार से, खोल दिमाग और दिल !



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1 FEB 2021 AT 22:30

ना ही अब कोई वास्ता है !

साथ चले थे किसी रोज़
ये वही जाना पहचाना रास्ता है !

एक अरसा हुआ तुम्हें भुलाए हुए
अब ना तुम्हारी यादों से भी कोई वास्ता है !

जानते तो थे अंजाम-ए-महोब्बत
पर आशिकों का दिल ये कहाँ मानता है !

सुकून है तेरा मेरे पास अब कुछ भी नहीं
पर मेरा सब है तेरे पास ये मेरा ख़ुदा जानता है !

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1 FEB 2021 AT 19:07


बतियाते हैं पौधे,
मैंने महसूस किया है !
हाँ बतियाते हैं पौधे !

प्रेम से सहलाओ इन्हें,
तो मुस्कुराते हैं पौधे !
हाँ बतियाते हैं पौधे !

न देखो कुछ दिन इनकी ओर,
तो मुरझा जाते हैं पौधे !
हाँ बतियाते हैं पौधे !

तपती दोपहरी में देख बादलों को,
ख़ूब इठलाते हैं पौधे !
हाँ बतियाते हैं पौधे !

कुछ पल निहारो बैठो इनके पास,
उदासी चुरा ले जाते हैं पौधे !
हाँ बतियाते हैं पौधे !

सूरज की आभा से खिलते हैं प्रातः,
चंदा से आँखे मिलाते हैं पौधे
हाँ बतियाते हैं पौधे!

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31 JAN 2021 AT 19:34

इस दूरी की वजह ,
अगर तुम बता देते
तो अच्छा होता ,

यूँ ख़ामोश न होते
नाराज़गी जता देते
तो अच्छा होता !

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31 JAN 2021 AT 16:23

हमको अंदाज़ा नही था,इतना बेदर्द ज़माना होगा!
अश्क़ आँखों मे लेकर भी, यूँ मुस्कुराना होगा!

इश्क़ करने की इस दिल को, सज़ा हरगिज़ मिलेगी!
न सोचा था शमा ने, बेवफ़ा परवाना होगा!

किताबें शायरों की पढ़ के हम, ख़ूब रातों में जागे हैं!
नाम ख़ुद का अब, शायरों में हमें लिखवाना होगा!

न होता है दिल होश में, जब इश्क होता है!
बेवफ़ा यार हो तो, होश में फिर आना होगा!

अगर यूँ टूटते जुड़ते रहे दिल आशिकों के!
तो रौशन इस शहर का हर इक मयख़ाना होगा !

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