Nisha Sagar   (Nisha Sagar)
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Joined 11 December 2018


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Joined 11 December 2018
6 AUG 2023 AT 22:47

"जो गुफ़्तगू करते नहीं किसी से,
वो हम ख़ुद को बता देते हैं।
मरहम भी लग जाता है,
ज़ख्म भी छुपा लेते हैं।"


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1 JUL 2023 AT 23:51

सब्ज़ मौसम है, ठंडी फ़िज़ा
दुनिया दर्द है तो वक़्त दवा।
-निशा

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24 MAR 2023 AT 23:00

किसी की ज़िंदगी का छोटा किरदार बनेंगे हम,
मग़र यादगार बनेंगे हम।
निशा कुमारी

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28 JAN 2023 AT 23:45

एक रोज़,
हाथ में आ गया वो ऊन गोला,
रंग-बिरंगी ऊनों के बीच,
मैंने चुन लिया उस पीली ऊन को,
हां, साथ में वो
हल्की बैंगनी ऊन भी चुन ही ली
बनाने को तितली की आकृति,
उस ठिठुरते सर्द मौसम में,
एक प्यारा सा स्वेटर बनाने की चाहत में,
पर मैं उलझ गई,
उस धागे में ही,
शायद सीख ही नहीं पायी,
ठीक से बुनना,
जो भी बुना तो अधूरा ही रहा,
जो ख़्वाब बुने तो रह गए अधूरे,
जो कल्पना बुनी,
तो पड़ गई उलझन में,
पूरा बुना ही नहीं कुछ,
तो ये स्वेटर भी बना ही नहीं,
रह गया अधूरा,
और वो तितली की आकृति,
हाँ, वो भी अधूरी ही रही।

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8 NOV 2022 AT 0:28

There are not so many coincidences together..,
when a lie is told to someone,
then only these coincidences show the mirror of truth,
and make them face the lie told by someone.

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6 NOV 2022 AT 12:14

धोखा तो धोखा है, खतरनाक ही होता है,
चाहें यह खुद को दिया हो या किसी अन्य को।
मगर जो धोखा हम खुद को देते हैं,
उसे उम्रभर के लिये सहना होता है,
खुद को दिया धोखा गहरे जख्म की तरह होता है,
जो धीरे-धीरे नासूर हो जाता है।
और हम घुटते हैं अंदर ही अंदर मन में कहीं।
फिर खुद ही अपने सपनों का टूटना,
कांच सा चुभता ही रहता है हरदम कहीं।
कभी बाहर का तूफान भी शांत सा लगता है,
अंदर के द्वंद भरे तूफान के सामने,
खुद के सपनों को अनदेखा करना भी,
अपराध है, हां बेहद गंभीर अपराध।

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2 NOV 2022 AT 19:57

विभक्त हुए जा रहे हैं,
कुछ उम्मीदों के पथ,
नीरव मन में हलचल लेकर,
मुख की मुस्कान ओझल है पर।
क़त्ल हो गए भावनाओं के,
कितने पल उलझन के संग,
टूट रहे धागे कच्चे से,
पड़ने लगे हैं गांठों के बंधन,
शशि की शीतलता है कुछ कम,
सूरज की तपन में हरदम,
आंखों में छुपे अश्रु से,
विमुख हुआ है फिर से मन।







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8 OCT 2022 AT 19:35

फ़क़त चीखों का शोर है,
अल्फ़ाज़ों में अब आवाज़ कहाँ!
-निशा कुमारी

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6 OCT 2022 AT 0:19

आज चांद अलग है कुछ कम चमकेगा,
मैं खुद गुम हूँ कोई कहां समझेगा!
अंजान डगर है पर मैं राही हूँ,
जाने ये ओझल सा सफ़र कब निकलेगा!




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16 SEP 2022 AT 19:05

मुझे हैरानी है बरसते हुए अम्बर पर...क्यों इतने सितम इस बार सितम्बर पर..।

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