Nisha Kumari   (Nisha bhaskar)
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Joined 7 October 2017


Joined 7 October 2017
25 OCT 2018 AT 21:13

कहाँ मिलता है सभी को विरह का उपहार
जो एकांगी प्रेम करता खिलता है वही जलजात।
कर प्रतिक्षा क्षण क्षण प्रिये का ज्यौ नवल प्रभात
दूर कर दे मन का अँधियारा दे सरल मुस्कान।

मेरे माही तुम हो अति भोले औ उदार
पर मुझे वंचित कर रखा है क्यों अनुदार।
स्नेह का बंधन नहीं तो है ये कैसा आचार
मन मेरा रत सदा तुममें तुम नवल विहान।

मिल गया पीड़ा विरह का प्रेम का परिणाम
नहीं कोई संताप अब है स्नेह पूर्ण- परिमाण।
क्या मैं माँगूँ अब जगत से हे भव-निधान
बस जाओ मेरे भाव भवन में हे मेरे संजातं।

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10 OCT 2018 AT 23:55

शापित जीवन को जी ले तू,
इच्छित वर का अभिलाष न कर।
यह मनुज जीवन है अति विषम,
समता का तू विश्वास न कर।
जल मे ही दोनों विकसते हैं,
कमल और कुमुदिनी का पुहुप।
एक रवि की प्रभा पाकर,
दुजा शशि की शीतलता छुकर।
यह देवाधिन दुनिया अद्भूत,
हैअशोक शोक मे खड़ा मूर्त।
जिसके शाखा को पकड़ कनुप्रिया,
कान्हा संग रास रचाती छकाती जिया।
बैठी उसी की छाया मे सीता सती,
दिनरैन बिताये ज्यौ हो यति।
यह लेख विभू की या है करनी,
नहीं कोई उलाहना सब है सही।

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2 OCT 2018 AT 22:09

भाव भवन मे आया कोई ,आज मेरा अनुरागी।
बाँके नयन ,श्यामल सूरत, गात बडे मनोहारी।
मृदु -मुस्कान अधर पर शोभे, माधव मदन मुरारी।
नित नित वास करो मेरे मन में चित्त बनें मेरा चकोरी।

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25 SEP 2018 AT 22:13

घरौंदा रेत का दुनिया..
जिसे भावों से चिनवा डाला
बिठाया उसमें दिलवर को
नयन ज्योति जला डाला
किया अर्चन मैंने बस इतना
गिला से दूर कर मन को।

किया सबने दान दौलत का
हमनें सूना प्रेम पात्र अर्पण की
तुम्हीं भर दो इसे दाता ...
मेरा जग से राग-रंग तर्पण हो
ना ढूँढूँ राग दूनिया मे ऐ मालिक
मेरे मन में तेरा वास हो जाए।

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10 AUG 2018 AT 11:26

बिना वादों के ही हम रहेंगे सदा-
संग तुम्हारे ये वादा रहा।

हम अपने नहीं पर गैरों की तरह
ना रहेंगे कभी ये वादा रहा।

सपना ना सही बनकर आयेंगे शबनम
तेरे आँखों में कभी ये वादा रहा।

महफिल मे हो चाहे कितनी रंगीनियां
तेरे तन्हाइयों मे मैं रहूँगी सदा ये वादा रहा।

नहीं कोई भी शिकवा तुझसे ऐ दिले-मेहमां
दिल से बेजार होकर ना होंगे हम यहाँ ये वादा रहा।

मेरे दर्द को ना समझो समझकर भी मगर
तेरे होठों पर मुस्कान की थिरकन बनुंगी ये वादा रहा।

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5 AUG 2018 AT 21:25

आज भी तुझसे मिलने पहुंची थी
उस दर पर ऐ मीत मेरे!
जहाँ कभी तुझसे रूबरू हुई थी
तुने दस्तक दिया था धडकनों पर मेरे।

पर शब्दों का आज आवेग नहीं था
खामोशियों की गुफ्तगूं से ही मुलाकात हुई
साकार नहीं देख पाई तुझे
मानस पटल पर ही तुझसे तालुकात हुई।

तुम्हारे मुख से ही सुना था ये कभी..
जिद कर मुझसे कुछ मांग निशा
अब खो गए किस मधुलय मे तुम
नहीं राह पता कि तुझे ढूँढूँ कौन दिशा

जो मैं हुँ तुम्हारी मीत प्रिय
तो दे दो अपना साथ सखे!
अब पूर्ण समर्पण भाव लिए
कर रही प्रतिक्षा प्रति पल प्रियवर।

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30 JUL 2018 AT 23:33

मिलने से पहले ये खबर ना थी
मुक्कदर ने मुझे नायाब बख्शा है।
शुक्रगुजार हूं हर वो कायनात का
जिसने तुम्हारे दर का राह बताया है।
महफूज़ रखना अपने नजरों में मुझे
खुद को झुठला कर के पाया है तुझे
मिलने से पहले ये खबर ना थीं..
जिन रौशनी की तलाश थी उन सितारों में
वो सितारा ही घर बनाया मेरे ख्यालों में ।
तुम्हारा आसरा ही मेरे राह का चिराग है
तुम्हारा संग मेरे नज़्म का मिशाल हैं।
मिलने से पहले ये खबर ना थी..
कसैलापन नीम का भी मदहोश करता है
नशा गुलर की गुठलियों में भी होता है।
गरीब भूख से जब बिलबिलाता है
गुठलियां गुलर की खाने को बेबस होता है
दुनिया यही कहती है अरे ये तो नशा करता है।
मिलने से पहले...

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24 JUL 2018 AT 14:48

उनकी यादें बस याद नही की
कभी आये कभी ना आये।
उनकी यादें सहचर मेरा
हर साँसों का साथ निभायें।
ऐ मालिक दो साथ अगर तो
बस इतना तुम दे देना।
जब भी तेरी सजदा करूँ
उनकी खुशबु से महके दामन मेरा।
नाम तेरा जब भी लूँ दाता
उनकी छवि नजरों में आये।
जन्म मरण का ना कोई बंधन
बस सांसों में रमता जाये।

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22 JUL 2018 AT 11:30

हे माधव हे रसिक शिरोमणी
वर्ण ब्रम्ह रुप स्वर है तरल मणी
सब में तुम हो तुमसे नि:सृत सब
ज्यों जलद से निकसे अमृत बूंद
नीलाकाश से सज्जित प्रांगण
तुमसे शोभित हैं जग का कण
तुम्हारी छाया नीलगिरी में
हर्षित कम्पित तुम जन जन में
देव तुम मुझसे नही विलग हो
तो फिर अपने अंक में भर लो
व्याकुल मन मेरा है सदा से
तिरोहित तुम कर लो स्वयं में

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18 JUL 2018 AT 15:50

तुम्हें ही लिखुं तुम्हें ही गाऊं
मेरे मन्मथ तुम्हें ही ध्याऊं
करो इतना उपकार हे प्रियवर
शब्द मेरे हो तुम बनो स्वर
किंचन मन मेरा है सदा से
पूर्ण करो मुझे सरल प्रेम से
जब तब मन विचलित होता है
मद विलास में ये सोता है
इस भव पंक से मुझे निकालो
नाथ कृपा कर मुझे उबारो
जन्म जन्म की क्षुद्र मति मै
मुझे अब अपने कर से सँवारो
बन जाऊ मै तेरी रागिनी
तेरी अधर पर ही लहराऊ
झंकृत हो जब तार ह्रदय का
नाम तेरा रटने लग जाऊ

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