शुभ मंगल है दिवस आज का
जन्मदिन है सिद्धि श्रेयसी का।
पुष्पित कली मधुर तरूणाई का
उत्सव है आज मुदित मन का।
बढ़ो सजगता से जग पथ पर
मिले सफलता तुझे निरंतर।
यही कामना है हम सबकी
मिले तुझे सदा, प्रेम परस्पर।-
नवल दीप है,नवल आस है,
नव ज्योति है, दीप्तिमान।
सज गई, दीपों की अवलि,
जगमगाती अमा की रात।
दूर भगाएंगे तिमिर धरा से,
प्रणबद्ध ज्योति का प्रभास।
उर में आस की असंख्य रश्मियां
पुलकित करती रहती है प्राण।
क्षमा दया करूणा व प्रेम से,
व शील शुचिता का प्रतिमान।
मिटा क्रोध अहंकार का पुतला
आए आज अवधपूर में श्रीराम।
*निशा भास्कर*
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई 🙏🌻
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आओ भाई !संतों आओ, शुभ घड़ी आई देखो आज।
दीप जलाकर अंतर्मन को, ज्योतिर्मय किया सुजान ।
दौड़ रहा चंचल चित्त मनवा, जैसे घोड़ा हो बेलगाम।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत,चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
आषाढ़ महीना पूर्ण चंद्र-सा, है सतगुरु मेरे तारणहार।
काला पयोधर-सा मचल रहा, शिष्यों का झुंड ज़हान।
अपने चरित के पुनित भाव से,लिया है हमको संभाल।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
सूर,- कबीर -तुलसी -सहजो,सबने लिया गुरु का साथ।
राम नाम करके सुमिरन, किया पार सिंधु बिन जलयान।
अहो भाग्य मिला गुरु का शरण, हो निराकार या साकार।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत,चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
गोविंद आये संग गुरु के बन-ठनकर ,कबीरा जी के द्वार।
प्रथम वंदना गुरु की करूं,जिन्हीं के कारण हुआ सनाथ।
वारूं सिर चरणों पर तेरे ,जो कराये गोविन्द से पहचान।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
सूर्य प्रकाश का पूर्ण स्रोत अनोखा,प्रतिफलन रूप है चांद।
कदम बढ़ावे एक-एक कर,अमा निशा से पूनम की रात।
हरै निरंतर सघन तिमिर को,दे धवल-शीतल शुभ्र मुस्कान।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
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तो मूल्य क्या होगा मोहब्बत का।
अरे मन! मोहब्बत करना सीख ले,
मोहब्बत पाने की चाहत नदारद होगी।
नदी कब कहती हैं सागर से-
मेरी मोहब्बत की खातिर,तू मुझसे मिलने आ।
मोहब्बत के नशे में मदमाती चल देती है,
वीरान पथरीली राहों पर, मोहब्बत के आगोश में समाने।
कई तराने है मोहब्बत के छिपाएं इस सीने में,
जो कह दिया फसाना तो दर्द की औकात क्या होगी।
मत मोहताज बन मोहब्बत का,गर-
तेरी होगी मोहब्बत तो खुद चलकर आएगी।
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हे रघुवर!तू ही हरिहर।
हे प्राणाधार!तू ही जगत प्रियवर।
मैं हूं तेरी पूजारन, भजूं तुझे हरपल।
हरो हर पीर मेरे, हे पीर हरण।-
रवि की लेकर के लालिमा,बनी मंजरी की बेटी।
तुम नव्य-नवेली नव्या,सुख बरसाती और हर्षाती।
तुम चंचल चंद्र चकोरी-सी,
जीवन आकाश की आभा हो।
वह चांद भी उतरे आंगन में,
जिसे तुमने भगवान से मांगा हो।
पूरी हो साध सब जन्मदिवस पर,
शुभकामना और आशीष हमारे हैं।
खिल जाए वो सारे फूल खुशी के,
जो कोमल ख्वाब तुम्हारे है।
खुश रहो सदा फूलों की तरह,
महको गुलाब की कलियों-सी।
जो बरसो तो बनकर हरसिंगार,
लगती हो तुम सुंदर परियों-सी।
यह जन्मदिवस का शुभ अवसर,
आए जीवन में तुम्हारे बारंबार।
अपनों का मिले सदा साथ तुम्हें,
यह बगिया है तुमसे गुलजार ।
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मेरे अस्तित्व का सागर तू,
मैं नदी,नीर-सी बहती जाऊं।
निर्झरणी है,ये मेरी दो नयन,
विशुद्ध प्रेम का जल बरसाऊं।-
नव हर्ष हो, उल्लास हो
अपनों पर विश्वास हो
नव वर्ष के शुभागमन पर,
जीवन में नव उजास हो।-
सभी कहते हैं हम घर बार वाले है
हम ऋषि महर्षि नहीं, संसार वाले है।
एक फौजी ही होता है ऐसा ऋषि-
महर्षि,जिसेअपना देश पूरा संसार
लगता है।
उसका हिफाजत करना
ऐसे ऋषियों का काम होता है।
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