गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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जज्बात आपके अल्फ़ज़ मेरे... यह facebook मे मेरा page है
थी नजरें बंद, दबी थी ये सांसे
था भीगा बदन ,थे दोनों ही प्यासे
वो पानी की बूंदे सता ही रही थी,
जो सोए थे अरमा जगा भी रही थी
ना हिम्मत थी तुममें, ना ताकत थी मुझमें
हाथ सहला के सिहरन मिटा रही थी
आहसांसो को बयां कर रही थी ये सांसे
की इतनी मोहब्बत फिर मिलेगी कहा से!!-
हर सुबह सुनहरी किरणों से
होती दिन की शुरुआत
कल की चिंता छोड़ दे कल पे
बिता कल का दिन और रात
आज का दिन ये मिला नया है
शतरंज की बिछी बिसात
कौन विजय का तिलक करेगा
और कौन खायेगा मात
जान लगा दो कम में अपने
जिसने भी देखा जीत का ख्वाब
जीवन हर दिन नई किताब-
मन के उलझन से थक जाते हम
कुछ नया करने का नहीं रहता दम
इन उलझनों को सुलझाने के अलावा
कोई काम नहीं मिलता
आराम नहीं मिलता-
जब मन मंदिर मे तूफान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब कोई अपमान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब राहें अनजान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब मूर्खों का गुणगान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब अपने परेशान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब असफल हर अनुमान हो
दुनिया अच्छी नहीं लगती
जब कहीं ना लगता ध्यान हो-
कितना भी पढ़ लो कोई भाता नही
तुम्हारे बाद
अगर पढ़ लो कविता, मन से जाता नही
तुम्हारे बाद-
क्यों हम इतने हो गए मजबूर?
है प्यार ,फिर भी है जाना दूर
है कैसा जीवन का दस्तूर?
क्यों प्यार में आँसू ही मशहूर?
हारी किस्मत से, घर वालों से,
हर सपना टूटा,हो गया सब चूर,
तुमसे वियोग की कल्पना से ही ,
दुख में रम जाते हैं!
सहम जातें हैं!
उत्सव होगा शहनाई होगी,
नव जोड़े की वाह वाही होगी,
होगा जश्न ,सजेगी महफिल ,
खुशियों की आवाजाही होगी,
उस महफिल में क्या ही मेरी ,
टूटे दिल की सुनवाई होगी,
उस रुदन,उस क्रंदन को,
सोच के ही, मैं जम जाते हैं!
सहम जाते हैं!-
in this lockdown
i m fired
my mind is
wrongly wired
by seeing this.
my room is tired-
टूटा झूठा अहंकार
व्यर्थ हुआ ये धन ये दौलत
व्यर्थ हुआ है ये घर बार
व्यर्थ में ही सम्हाले इतने रिश्ते नाते
मुस्किल में कम ही हैं जो साथ निभाते
धोका खाया मैं हरबार
सब मतलब का संसार
थोड़ा थोड़ा करके
टूटा जूठा अहंकार-