सुर की तरह,आजाद गगन में,
बहती वायु की तरह।
फूलो की तरह,खिलती जमी पे,
मुस्कुराते चेहरों की तरह।
आंखो में भरे सपनो की तरह,
दिलों में उतरती ज्वाला की तरह।
भारत हु मैं, है नाज़ मुझे इस मिट्टी पे,
तिरंगे में लिपटे उन जंजू की तरह।
यादों की तरह, घुलती कहानियों में,
लंबे सफर की तरह।
कस्ती की तरह, गुजरते पहाड़ों से,
चट्टान इरादों की तरह।
नीले चरखे में छुपी सच्चाई की तरह,
केसरी और हरे रंग में लिपटी,
साहस एवम प्रगति की तरह।
लाल किले पे लहराती जब वह,
सालों की तपस्या का उत्सव मनाती,
कोई नई सुबह और चमकते सूरज की तरह।
- निरुपमा झा
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