शायद बदल गई हूं मै...
कुछ चीजें समेटते समेटते
मानो जिंदगी बिखर सा गया है,
फिर भी निखरने के चाहत में आगे चल पड़ी हूं मैं;
उम्मीदें अब भी है,
मगर पहले की तरह किसी और से नहीं
खुद से करने लगी हूं मैं;
"अपने और सपने" दोनों जरूरी है,
इसलिए जिम्मेदारियों के साथ ही भागने लगी हूं मैं;
अब किसी को समझाने से ज्यादा खामोशी रास आने लगी है,
कभी अकेलापन से डर था,
अब महफिलों से मुंह फेरने लगी हूं मैं;
हां शायद बदल गई हूं मैं...
बदल गई हूं मैं...
बदल गई हूं मैं...
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