निरंजन राठौड़ ‛नर’   (निरंजन राठौड़ ‛नर’)
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Joined 9 September 2020


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Joined 9 September 2020

मंज़िलों से गवाही क्यों मांगी जा रही है?
तन्हा रास्ते गवाह है हमारे सफ़र के।
बादल , चांद और सूरज,
हमारे गवाह हैं हर शहर में।।
परिंदे सुबह के, सांझ के सितारे,
दरख़्त गवाह हैं हमारी दोपहर के।
कोने में पड़े खतूत इसके गवाह हैं
हम स्याह पड़े हैं इश्क़ के ज़हर से।।
हमारे पास कभी पतवार थी ही नहीं,
कश्ती ने ख़ुद बदले हैं रुख लहर से।
ताउम्र भागते रहे छांव की तलाश में
बच न सके मगर धूप के कहर से।।
ग़म - ओ -फ़राग़त सब बराबर हैं,
ग़ज़ल - ए - ज़िंदगी की बहर में।
हम से शुरू, हमीं पर ख़त्म हुआ है,
हम ख़ुद गवाह हैं, हमारे सफ़र के।।
मंज़िलों से गवाही क्यों मांगी जा रही हैं,
तन्हा रास्ते गवाह हैं हमारे सफ़र के।।।।

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तुम अपने हक़ के आसमां से अनजान बैठे हो।
चार दानों की खातिर पिंजड़े को घर मान बैठे हो।।

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फूलों को चुनना तुम , मैं काँटों के संग हूँ।
रंग हूँ पर रंगीन नहीं , मैं काला रंग हूँ।।

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औरों के गालों का गुलाल होने से बेहतर है,
तुम्हारे क़दमों की धूल हो जाना ।
औरों का मुक्कमल इश्क़ पाने से बेहतर है,
तुम्हारा एकतरफ़ा आशिक़ हो जाना।।

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तारें ख़ूबसूरत हैं मग़र रोशनी नहीं दे पाएंगें,
चाँद करेगा पखवाड़े-भर की रातें रौशन;
अगर हर रोज़ रोशनी चाहिए,
तो तुम्हें सूरज की आग को चुनना होगा!

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होंठों की चुप्पी दुनिया ने देखी,
सुन नहीं पाया मग़र आँखों का शोर कोई।

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इन बेजान पड़ी पथराई आँखों में जो सूखा पड़ रहा है;
वो एक अरसे पहले आई भयानक बाढ़ का नतीजा है।

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आज फ़िर सजी है महफ़िल,
मेरे सामने मेरी मौत है,
मेरे हर शेर पर
मेरी खुदकुशी की एक किश्त अदा होगी!

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तुझमें,
‛हम’ को तलाशते हुए।

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कब तक भूखा सुलाएगा ?
ऐ बुरे नसीब...
एक दिन
हम भी तेरी मौत की दावत उड़ाएंगें!

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