उदासी में बैठकर, खामोशी को ओढ़कर,
सर्द हवा से पथराए होठों पर,आए तीखे दर्द में,
यह याद आया कि,
वो उदासियां अब याद नहीं,
वो खामोशियां अब याद नहीं,
वो रंजिश क्यों हुई, वो दूरी क्यों बढ़ी,
वो जो सपने थे वो कहां गए ?
वो जो फितरत में गर्मी थी,
जिससे सर्दियों की ठिठुरन में भी होठों में नरमी थी ।
वो सब जो अब बीता हुआ कल है,
एक आ रही है पीढ़ी, जो उसका आज बनेगा,
वो सब अब बस यादों में रह गया है,
और
कमबख्त वो यादें अब याद नहीं ।
-