मुक़द्दर से ज़िंदगी बढ़ाने चले थे,
ख़ुद ही को खुदा बताने चले थे,
ज़िन्दगी का मौजू खुदा ही भले हो,
ख़ुदी को मौजू बनाने चले थे।
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तुम्हारी नाकाम कामयाबियों से,
तुम्हारी बेवक़्त की गालियों से,
तुम्हारी मुरझायी हुई मुस्कुराहटो से ,
तुम्हारी समझदार बाल हटो से,
बिन बात की शिकायतो से,
नामक चीनी सी किफ़ायतों से,
सुबह से शाम और सालो गुजरी हुई मुलाकातों से,
उन ना गिने हुए झगड़ो से,
तुम्हारे लिए जो भिड़ा हो तगड़ो से,
जब तुम ना सुनो तो पीछे ना हटे तुम्हें धुनने से,
बचाकर ले जाए जो तुम्हें मिठियाने वाले घुनने से,
उसे तुम कोई रिश्ता या नाम मत देना, बस ये कह देना ,
‘ये मेरा दोस्त है’
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रात भर एक ही ख्वाब जगाये रखता है
कहीं कोई ख़्वाब देख ना लूँ, ये डर सताए रखता है ,
कुछ ख़्वाब देखना तुम्हारी क़िस्मत और हैसियत से परे है,
ये ख़्याल तुम्हारी जगी हुई बंद आँखों को बताए रखता है ।-
What you seek, is seeking you.
If you stop seeking, it would stop too,
If you keep seeking, somewhere in the middle of time
it shall meet you.-
प्रेम की परिभाषा सरल लगती थी
फ़िर उनसे प्रेम कर लिया ,
अब ज़िन्दगी कठिन लगती है ।-
कोई शहर कितना भी अच्छा हो मगर वो लखनऊ नहीं हो सकता,
जहाँ सुबह शर्मा की चाय की चुस्की चटपटी हो जाती है ,
प्रकाश की कुल्फी फ़ालूदा बन थोड़ी तीखी हो जाती है
दशहरी को चख कर अक्सर नशा सा हो जाता है
जो आता है लखनऊ , यही का हो जाता है-
वो आए हमे सिखाने की इश्क़ ना करना
और मेरे माशूक़ होकर चले गए ।
आए थे सिखाने की इश्क़ जान लेगा,
और ख़ुद ताबूत होकर चले गए ।-
तुमसे मिलकर कुछ पल ही अलग रहना
कुछ ऐसा लगता है , जैसे,
इकत्तीस दिसम्बर के बाद एक जनवरी आता हो
दिन तो एक ही बीता है पर ज़िंदगी का एक साल बदल जाता है ।-
कि सूरज ढल गया है देर हो गई है
चल अब घर चलते हैं, मैं रात हूँ पर कुछ दूर तेरे साथ चलूँगी ,
पर खुली खिड़की से आती हुई रात की इन आवाज़ो के बीच,
वो चमकती दीवारो में ठंडी हवाओं में,
इक चादर में अपने घर की छत पर नम हवाओं को ओढ़कर सो गया ।
रात कहती रही और
फ़िर सुबह उठकर वो रात को दोबारा से सुनने का इंतज़ार करने लगा ।।-
आज फ़िर हवा नम है , आज फ़िर माहौल में उदासी है ,
आज फ़िर बारिश में कुछ गर्मी है ,
लगता है आज फिर कोई धुन;
सुर की ट्रेन नहीं पकड़ पायी है ।-