Nirankush Khubalkar   (निरंकुश "नीर")
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Joined 22 January 2020


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5 JUL 2022 AT 10:38

बरखा न बरस !!
धरती की तपिश मिटाने आती है बरखा,
और तपन मिटाकर चली जाती है बरखा ll
ज़िंदगी की तपन मिटाने आयी थी "वो"
अगन और बढ़ाकर चली जाती है "वो" ll
काले बादलों के बीच, रौशनी दिखती ही नहीं,
बरसात उन घटाओंकी ऐसी कि थमती ही नहीं ll
दिल में तेज़ होती धडकन की गति रुकती ही नहीं,
ज़ेहन के सवालों की गिनती भी कभी थमती ही नहीं ll
बरखा न बरस तू, बुझती आग़ भी भड़क जाती है,
न बरस तू, आँखों की नमी और भी बढ़ जाती है ll
क़तरा-क़तरा मिलकर फिर बहती धार रुकती ही नहीं,
दहकती यादों की बढ़ती तपीश "नीर" रुकती ही नहीं ll
बरखा न बरस तू...

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30 JUN 2022 AT 23:50

Here is..
इस शख़्स के लिए कोई हर्फ़ नही मोहताज.. कितना कुछ बयाँ करूँ, काफ़ी नहीं मेरे अल्फाज़..
एक वक़्त का तकाज़ा था, जब था यही सरताज..
शख़्सीयत ऐसी कि करता रहा दिलों पे हमेशा राज...

ज़िंदगी है, बचपन गुज़र गया तब जवानी आयी..
बुढ़ापे ने दस्तक देना चाहा, बात कुछ काम न आयी
देखो ज़रा इधर एक नज़र, उसकी एक न चल पायी..
मिले अदब से, दोस्ती M. T. ने बड़े शिद्दत से निभायी..

इसकी तो न आदत बुरी.. देखीं हरदम तबियत खरी.
ज़िंदगी भर खुशियाँ बिखेरी,जो भी मिला उसकी झोली भरी..

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23 JUN 2022 AT 22:49

क्या जब तुम चले जाओगे..
दर्द बेतहाशा देके जाओगे..!
लौट के कभी न जाने के लिए..
या फिर वापिस चले आओगे..!!

न मिलोगे तो फिर क्या पाओगे..
दिल के बदले क्या देके जाओगे..!
सवाल बहुत हैं सामने मेरे लिए..
जबाब कभी देके भी जाओगे..!!

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11 JUN 2022 AT 7:41

कौन हैं हम?
मिले थे तुम उस ख़्वाब में, थे एक अजनबी से,
आँख खुली, महसूस हुआ, मेरे लिए हो ख़ास..
सपनों की दुनिया होती नहीं कभी अपनों की,
देखा न भाला, तो क्यूँ, मिलने की लगायी आस..
वक़्त का दौर चलता है, समय नहीं किसी का
क्यूँ लगा मैं जिस्म हूँ, तुम मेरे जिस्म की साँस..
आ कर चले जाना, फ़ितरत में, ईद का चाँद जैसे,
दिखती हो दूर से, दिखती नहीं कभी आसपास..
अनबुझी प्यास
जैसे बाँसुरी की धुन तू, मैं उसका बाँस..
अनबुझी प्यास, बन गयी गले का फाँस..
बस एक तू ही नहीं पास.. मुझे जीना आये न रास

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11 JUN 2022 AT 7:15

कौन हैं हम?
मिले थे तुम उस ख़्वाब में, थे एक अजनबी से,
आँख खुली, महसूस हुआ, मेरे लिए हो ख़ास..
सपनों की दुनिया होती नहीं कभी अपनों की,
देखा न भाला, तो क्यूँ, मिलने की लगायी आस..
वक़्त का दौर चलता है, समय नहीं किसी का
क्यूँ लगा मैं जिस्म हूँ, तुम मेरे जिस्म की साँस..
आ कर चले जाना, फ़ितरत में, ईद का चाँद जैसे,
दिखती हो दूर से, दिखती नहीं कभी आसपास..
अनबुझी प्यास
जैसे बाँसुरी की धुन तू, मैं उसका बाँस..
अनबुझी प्यास.. बन गयी गले का फाँस
बस एक तू ही नहीं पास.. मुझे जीना आये न रास

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1 JUN 2022 AT 15:05

टूटे दिल की ख़ातिर करने का तजुर्बा तुम्हें हासिल..
अब मिल गये, दिल के टूटने की नौबत न आयेगी..
तेरा दीवाना दिलवाला सदा के लिए तू भी पायेगी..
सोचा करते थे कभी, अब सोचने से क्या हासिल..

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31 MAY 2022 AT 19:08

कुछ पूछना था, कहना था तुमसे..
मिलना, समझना और प्यार का इक़रार भी हो जाना..
सादगी में भी जमाल होता है क्या..?

इश़्क की राह में कदम बढ़ाते हुए आगे की ओर जाना..
ऐसे ही दिल हलाल होता है क्या..?
फिर कहना हाँ इश्क़ हुआ, कुछ गुरूर भी हो जाना..
इसी ख़याल में जलाल होता है क्या..?

मिलते रहो सालोंसाल, और अचानक गुम हो जाना..
ऐसा भी कोई ख़याल होता है क्या..?
दिल का टूटना गोया, असर दिल पर क्या हो जाना..
यह भी कोई सवाल होता है क्या..?

नज़रों से ऐसे ओझल होना कि लौट के ही न आना..
छाया हुआ रंगे-मलाल होता है क्या..?
कोशिश जानने की करना, ऐसा किस लिए हो जाना..
कुछ कह दो तो बवाल होता है क्या..

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26 MAY 2022 AT 8:36

साथ रहे अपनों का, कहने वाले कह जाते हैं,
लोग न जाने क्यूँ बेवजह ही बेगाने हो जाते हैं..

अभी-अभी भरा जाम गले से उतरा नहीं कि,
नशा होने से पहले ही खाली पैमाने हो जाते हैं..

बात शुरू करते जब, हमारे दीवाने हो जाते हैं,
दौर बातों का शुरू हुआ, कि बेगाने हो जाते हैं..

साक़ी तेरी बज़्म में शम्म्अ जली भी न थी कि,
देखो तो वहाँ, जमा परवाने कितने हो जाते हैं..

जाम-शीशा साक़ी संग टकरा ले ऐ 'नीर' वरना,
बेरंग होती बज़्म से सारे ग़ैरो-बेगाने हो जाते हैं..

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24 MAY 2022 AT 9:16

साथ रहे अपनों का, कहने वाले कह जाते हैं,
लोग न जाने क्यूँ बेवजह ही बेगाने हो जाते हैं..

अभी-अभी भरा जाम गले से उतरा नहीं कि,
नशा होने से पहले ही खाली पैमाने हो जाते हैं..

बात शुरू करते जब, हमारे दीवाने हो जाते हैं,
दौर बातों का शुरू हुआ, कि बेगाने हो जाते हैं..

साक़ी तेरी बज़्म में शम्म्अ जली भी न थी कि,
देखो तो वहाँ, जमा परवाने कितने हो जाते हैं..

बदहवास उल्लू अपना रंग जमाने आ जाते हैं.
महफ़िल में रंग भरने तो, गुज़र ज़माने जाते हैं..

जाम-शीशा साक़ी संग टकरा ले ऐ 'नीर' वरना,
बेरंग होती बज़्म से सारे ग़ैरो-बेगाने हो जाते हैं..

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21 MAY 2022 AT 7:22



रोड़े अटकाती हैं दूरियाँ वक़्त-बेवक़्त प्यार की चाह में,
साबित होती हैं दूरियाँ अक्सर दुश्मन, इश्क़ की राह में..
बिन बताये जाना यार का, फ़ंसाना है गोया मुसीबत में,
अकेलापन बना जाता है फिर बेसहारा, इश्क़ की राह में..
जीने की कोशिशें, सिमट जाती हैं उम्मीद के दामन में,
बिखरे ख़्वाब की कतार सी बनती है इश्क़ की राह में..
यादों की धुंधली तस्वीर, साफ़ न होती इश्क़ की राह में..
आईना जैसे नक्शे-पा हो, अक्स ढूँढता इश़्क की राह में..
जाना दूर जानां का चुभोता हैं ख़ूब नश्तर, कोरी बाह में,
नाकाम कोशिश है निकालने की खार, इश़्क की राह में..
दिन लगते सारे ही भारी, न जाने हर वक़्त ही माह में,
वक़्त का तकाज़ा, भारीपन थमा जाता इश्क़ की राह में..
खुशियों की ललक, देर न लगती, कब बदलेगी आह में..
फूँक कर कदम रखना बेहतर ऐ "नीर", इश्क़ की राह में..

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