Niraj Kumar Singh   (Niraj_नायाब)
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Joined 8 April 2018


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6 JAN 2021 AT 0:35

Jab koi padhta hi nahi,
Toh likhna kyu.....?
Likh bhi liya toh,
Khud ke likhe ko padhna kyu..?


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10 DEC 2020 AT 0:59

Keep moving the path you're on...
Nature seldom allows persistent efforts to go unrewarded




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27 NOV 2020 AT 4:53

Thoughts were cut across,
And....
I found "fine",
None of them were mine.

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19 SEP 2020 AT 1:09

यूँ बेवजह...
कोई तनहा न होता,
चेहरे पे गर कोई चेहरा न होता,

कट जाती ज़िन्दगी एक पल में यहाँ,
दिल में चोट गर कोई गहरा न होता,

कुछ मरता है अंदर तो मर जाने दे...
जीने में सुकून गर होता वहाँ तो,
आज नायाब यहाँ न होता ।

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29 JUN 2020 AT 7:15

इस जहाँ से भी आगे, एक बसेरा है,
आधा तेरा और आधा मेरा है,
खट्टी-मीठी यादों का, एक ढ़ेरा है,
कुछ़ ख़्वाब कभी, तुम भी बुन लो,
आज अँधेरा तो कल सवेरा है।

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13 JUN 2020 AT 1:06

तलबगार है ये ज़िन्दगी...

बुलंदियों के नये आयाम का,
मुस्तक़िल हौंसलों के अंजाम का,

और.....

वक्त की मुख़ालिफ़त छ़ोड़़ दे नायाब...
अंदाज़ा हो जाएगा मंज़िल की बिसात का।

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4 MAY 2020 AT 4:21

समन्दर में दरिया का पानी..
शायद अपनी पहचान ढ़ूंढ़ रहा है,
मिट्टी की चाहत लिये दिल में,
किनारों से मायूस लौट रहा है..

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21 JAN 2020 AT 3:15

Insaan Bhi Ajeeb Hai !

Jab Sirf Ek baat Hoti Hai Dil Mein,
Toh Kitna Kuch Keh Jata hai...
Or
Jab Bohot Si Baatein Hoti Hai Dil Mein,
Toh Sirf Ek Baat Keh Jata Hai...

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16 DEC 2019 AT 23:58

उसके नूर को ख़ुदा बख़्श दे,
अब चाँद की ओर, मैं देखता नहीं हूँ...
उसकी ख़ूबसूरती तुम्हें बताऊँ कैसे,
आँखों से अब और, मैं देखता नहीं हूँ...

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2 NOV 2019 AT 0:22

वक्त की चाल है चलने दो,
दरिया में लहरों को छ़लकने दो,
वो ख़ुश हैं एक शहर डुबाकर,
ज़रा समंदर का सैलाब आने दो।

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