Niraj K   (Niraj k)
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Joined 30 December 2017


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24 JAN 2022 AT 11:13

बस्ती-वस्ती जंगल-वंगल जला दी जाए
सब गुनाहगारों को सजा दी जाए


चाँद को उतारा जाए झील में आज
और फिर आग पानी मे लगा दी जाए|

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18 JAN 2022 AT 22:21

शाम से ही आँखों मे नमी रहती है
याद तेरी दरवाजे पे खड़ी रहती है

तुझको देखु या तुझसे बात करूं
हर घड़ी उलझन ये पड़ी रहती है

निकल आयें हैं तेरी गलियो से दूर कहीं
पर तू अभी भी मुझमे कहीं रहती है

जिक्र तुम्हारा सुनकर खो सा जाता हूं
और चाय टेबल पर पड़ी रहती है

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17 JUL 2021 AT 22:32

खुले गगन के नीचे जिनका बसर होता है
ऐसे परिंदो का कहाँ कोई घर होता है

हवाएँ तक बिकने लगती है जब बाज़ारो में
तब जाकर यहाँ कोई शहर, शहर होता है

मेरी हर कोशिश को बेकार समझने वालों
मंजिल से पहले हर शख़्स रहगुजर होता है

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1 MAY 2021 AT 13:19

कोई भी 'सदा' अब पलट कर नहीं आती
आते-आते आती है साँस, फिर नहीं आती

रिश्ते जल रहें हैं और बुझ रहा है हर इंसान
ऊपरवाले अब तो तेरी भी खबर नहीं आती

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23 APR 2021 AT 7:44

हाथों में हाथ रख के शिकवा किये गए
कैसे कैसे मंज़र आँखों में पैदा किये गए

गैरों को पीने पिलाने की पूरी छूट थी
और हमपे कुछ सितम ज्यादा किये गए।

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10 FEB 2021 AT 0:40

बस एक नज़र देखा और चले आये
भर कर आँखों में वो मंजर चले आये

अभी भरा नहीं था वो पेशानी का घाव
और हम नए जख्म खाकर चले आये

हमने रख दी जिंदगी उनके हाथों में
और वो हमें जहर देकर चले आये

जहाँ से लौट कर कोई नहीं आता
हम उस दरवाजे से होकर चले आये|

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1 FEB 2021 AT 14:55


कभी जुल्फे, कभी चेहरा, कभी कमर देखते हैं
रख कर शानों पर सर, हम सारा शहर देखते हैं

जहाँ भी वो होते है सभी उस तरफ देखते हैं
और हम सभी देखने वालों की नजर देखते हैं|

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30 JAN 2021 AT 22:42

आरजू यही थी कि अपना कहे कोई
आँखों से राब्ता करे दिल में रहे कोई

सफर ए जिंदगी में सभी भाग रहे है
चाहता यही था मेरे भी साथ चले कोई

आँखों में मेरी आँशु देख रातें रो पड़ी
कमरे में इस शख्स के चाँद धरे कोई|

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2 JUN 2019 AT 16:38

ये मेंरे अंदर का दर्द मेरी कलम से आ निकला
बहुत रोका मगर कमबख्त ये बाहर आ निकला

जिसे हम उम्र भर पानी समझ कर बहाते रहे
उस आँख का एक एक कतरा दरिया निकला

हम करने गए थे जिससे मोहब्बत की गुफ़्तगू
उस शख्स का तो किसी और से मसअला निकला

तेरी महफ़िल ने भी बेग़ैरत से नवाजा है मुझको
तेरे शहर का हर एक पत्थर दुश्मन मेरा निकला

ये मोहब्बत भी एक तरह की दलदल है 'नीरा'
जो इक बार डूब गया वो फिर उमर भर ना निकला

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5 OCT 2021 AT 23:25

जिनके छूने से आ जाती है
पत्थरो में भी जान

मैं उन हाथों की कठपुतली
बनना चाहता हूँ।

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