હા, પૂનમ અમાસ જેવો સ્વભાવ થઈ ગયો છે,
એક પલ મા લાગણીની ભરતી તો બીજી પળ શંકા ની ઓટ છે-
તું કેમ એમ કરે?
જો હું હોવ પાસે,
તો તું દૂર શાને ફરે
દૂરરહુ જો હું ત્યારે
તો તું પાસે શાને ફરે!!!-
मुझे यकीन हैं आज मैं तुम्हें पसंद हूं,
कब तक रहूंगी यह बता दो।
जब साथ नहीं रहूंगी तब भी,
जब तुम्हारे साथ कोई और होगी, आखिरी पसंद नहीं बन सकते ?
हम एक दूजे को पसंद कर पाएंगे, क्या एक दूजे को पसंद करते हुए. किसी और को पसंद कर पाएंगे ??
कैसे रहेंगे बिना एक दूजे के और यदि हां तो फिर, क्यों आज साथ है एक दूजे के ??
जब पास नहीं रहूंगी तब भी,
क्या तब भी ???,
जब मेरे साथ कोई और होगा,
क्या तब भी ???, क्या हम एक दूसरे की,
क्या किसी और को पसंद कर,
अगर नहीं तो फिर, है-
शिकायत अब तुमसे क्या करे काना,
जब हम ही लापरवा निकले,
तुम ने तो बहोत कुछ दिया
मगर हम ही संभाल ना पाये,
मनाया तो तुमने भी पर
हम ही जिद छोड़ ना पाये,
अब तुमसे क्या शिकायत करे!!"""-
કોઈએ ઝાંખીને નહીં જોયું હોય એના હ્દયમાં,
બાકી, એ પણ સંગેમરમરની આબેહૂબ આકૃતિ હતી!!-
अभी भी संभाल के रखा हैं मैंने यादो को तुम्हारी
तुम्हारे ही इंतजार मे चल रही हैं मेरी सांसे सारी!!!-
હું ક્યાં કહું છું કે શબ્દો માં જ "હા "થવી જોઈએ,
તારી ઝૂકેલી પાંપણ "ના "પર ભારી હોવી જોઈએ!!-