Ninaad S  
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Joined 3 August 2021


Joined 3 August 2021
31 MAR AT 10:28

तुम भी तो हिस्से में आयी हो मेरे
थोड़ी भी हो और अधूरी भी सही
नरम से लब पर गरम सॉंसों से दूर हूँ
गीली बात टुकड़ो में और पूरी भी नहीं

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31 MAR AT 8:13

हदस बैठी हुई है
नज़र के
फिर टकराने की
निगाहें फिर भी
दौड़ती है
हादसों के लिए

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22 FEB AT 6:37

मैं काफी देर तक चुपचाप जागता रहा था उसके साथ
वो भी मौन थी कि किस विषय पर फिर आज छिड़ेगी बात
अँधेरा घना था कि दिखता नहीं था चेहरे को चेहरा
पर बाहें नशीली थी ना जाने उसने मुझे कब आ घेरा

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17 FEB AT 18:18

तुम.सोचो चंद फेरे कैसे एक कर देते है दो शरीर ?
संसार ने कठपुतली बना दिया है तुम्हे
ये कह कर कि तुम तो संसार से निर्वाहित हो
अपने मन पर कड़ा प्रतिबन्ध
और फिर देह पर भी नियंत्रण
क्या है ऐसी खुश फहमी तुम्हे
बड़े खुश हो कि तुम देह से विलासित हो

बस, जुड़े जिससे मन की रस्सियाँ
उसे पहले पाप कह दो , और फिर यत्न करो कि
उसी पाप राह स्वयम तक बाधित हो
परिणय का अर्थ विवशता कैसे हो सकता है
प्रगाढ़ हो भी जाओ किसी के संग
कैसे छल का रास्ता हो सकता है
संसार का छद्म एक क्षण छोड़ कर
आज  स्वयम से पूछो
कौन है तन-मन का संगी
तुम किस से विवाहित हो?

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17 FEB AT 18:09

बाइस वर्षो में
अपनी अनछुई मित्रता
अब भी नीरव है
शब्द रहित है अब भी राधा
और मौन  अब भी केशव है
कोई बात है हम दोनों में
पर अब भी अनसुनी  है
कहती कुछ नहीं है
पर खींचे जा रही है 
आँखों  में आँखे डाल कर
पलके भी अपलक है
आलिंगन में एक दूसरे को
मीच भींचे जा रही है
मेरी भावुकता का वृक्ष
फलफूल रहा है 
एक बेसब्र मुलाक़ात
मुझको सींचे जा रही है
ढूंढने आ जाता हूँ मैं
बार बार तुममें
ऐसे प्रगाढ़ युग्म है
पचास साल पार

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3 FEB AT 12:53

भले ही वक्त सा हो गया
उसकी नज़रो का भी ओझल हूँ मैं
थकी सी उम्र हूँ और
अगर उसकी प्यास को भी बोझल हूँ मैं
लाख गूंगी मुलाकातों ने यदि
उससे मेरा शौक भी छीन लिया है अगर
आज भी हालात से मैंने कोई
समझौता नहीं किया नहीं है मगर

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3 FEB AT 8:59

केवल लड़ाइयों पर ही सारा दारोमदार नहीं होता
देखो कि कोई एहसास दरकिनार तो नहीं है
समझदारी ज्यादा उलझाती है खुद को सही ठहरा कर
मैं भी हूँ उन्ही मैं मुझे भी इंकार तो नहीं है

क्या यदि मन मसोस ले तो क्या हम खुश होंगे ?
दहलीज़ पर ही है मन का घर , दूर घरबार नहीं है
कष्ट दे कर मन को कितना खुश हो पाएँगे
निकल रहा समय , तब भी खिड़की से झाँकने तैयार नहीं है










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2 FEB AT 23:00

कोई लिखावट अब भी है हमारे बीच पढ़ लेने को बाकी
कभी आँख धुंधली है कभी उजला दिया नहीं है
उसने वो बात तब भी नाम लेकर नहीं कही थी
मैंने भी जवाब में कभी उसका नाम लिया नहीं है





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2 FEB AT 22:57



वो भी कब कहता है कि बिन मेरे जिया नहीं है

मैंने भी दिया ज़ख्म अब तक सिया नहीं है

फिर भी मुश्किल है कि कह दूँ कि वो मेरा नहीं है

उसने भी इंकार मुझसे अब तक किया नहीं है 

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14 JAN AT 6:26

केवल उंगलियों ने साथ दिया लिख देने को एक थाह

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