Nimisha Kurrey   (निमिशा कुर्रे)
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Joined 9 November 2018


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Joined 9 November 2018
14 AUG 2024 AT 21:24

तुम ने ख़ामोश रहने की हिदायत क्या दी
ढँक दिया हैं मेरे आवाज को एक ख़ामोशी ने

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11 JUN 2024 AT 17:47

गिलहरी थी मैं जो पेड़ पर घंटों
उछल कूद करती जिसकी जड़ों ने
मुझे तुम्हारे हृदय तक पहुंचाया

तुम्हारे वियोग के पश्चात् प्रकृति के
नैसर्गिक सौंदर्य के बीच
लाख कोशिशो के बाद भी उस कविता रूपी
पेड़ पर नहीं बैठ पायी
विरह से मानो मेरे भाव विलुप्त,शब्द
प्राणहीन और भाषा विलुप्तप्राय हो गए

तुम्हारी चिर स्मृतियों से अब
टिटहरी बनी फिरती हूँ !!

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21 FEB 2024 AT 16:21

आरम्भ
माया हैं
जबकि
अंत सत्य हैं!

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4 JAN 2023 AT 19:22

"लफ़्ज़ों की खनक में तुम हो लबों की रुसवाई में भी तुम हो
महफ़िल की रौनक में तुम हो साँसों की तन्हाई में भी तुम हो

नदी सा बावफ़ा हैं मेरा दिल और तुम एक समंदर हो
चाहत की सतह में तुम हो दिल की गहराई में भी तुम हो "

निमिशा कुर्रे

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12 NOV 2022 AT 18:45

रफ़्ता रफ़्ता yq मेरे हस्ती का सामां हो गए
पहले जाँ फिर जानेंजा फिर जानेजाना हो गए

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13 JUL 2020 AT 11:21

एक ग़ज़ल मेरी नज़र से सुनिए
तारीफ़ अपनी इस ख़बर से सुनिए

यादों कि ज़ागीर में रहते हैं आप
मेरी दुआओं के असर से सुनिए

ख़लिश हैं दिल में बिन आपके
मद्धम चाँदनी के सफ़र से सुनिए

नवाजिश कि महक हैं गुमसुम
ग़ज़ल के लड़खड़ाते बहर से सुनिए

आपकी कलाम पढ़ने मुन्तज़िर हूँ
उम्मीद की गुल्लक में सिफ़र से सुनिए

सफ़र के सफ़ीने को चाहत हैं आपकी
सागर में कैद इस गुहर से सुनिए

लफ़्ज़ों कि शिद्दत ने बुलाया हैं आपको
आप जहाँ भी हो उस नगर से सुनिए

निमिशा कुर्रे

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21 APR 2020 AT 16:07



चमक आँखों कि सितारे लौटाने लगे हैं
होंठ तब्बस्सुम चेहरे पर खिलाने लगे हैं

क्या खूब थी साजिश ज़माने कि देखिये
मचलते भंवर मुझसे अब दूर जाने लगे हैं

झील में प्यार सूख चुका शायद इसलिए
मेरे प्रीत के कँवल भी कुम्हलाने लगे हैं

मंज़र शबाब का कुछ ऐसे भी गुज़रा कि
गूँगे होकर दर्द मेरे तराने गुनगुनाने लगे हैं

आग दहकने लगी हैं यहाँ सीने में हमारे
और वो बारिश में अलाव जलाने लगे हैं

अभी-अभी अंडो से निकले चूज़े हमें
सलीका जिंदगी जीने का सिखाने लगे हैं

शब्द लेकर जन्म तल्खियों कों मिटाने
मन में चीख-चीखकर छटपटाने लगे हैं

तमाम बंदिशों से होकर परे हम "निमिशा "
अश्क़ को कागज़ कि गोद में बहाने लगे हैं

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14 JAN 2022 AT 17:10

विकास में
प्रकृति का विनाश
छिपा हैं!

निमिशा कुर्रे

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1 JAN 2022 AT 10:50

एक प्याला भी अश्क़ का पीया नहीं जाता
शक कि सिलवट पर वफ़ा बिछाया नहीं जाता

उसकी चाहत में हमें क्या से क्या हो गए
खुशी जलाई नहीं जाती ग़म बुझाया नहीं जाता

निमिशा कुर्रे

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25 NOV 2021 AT 9:02

सुहागन रातें दर्द कुँवारा देती हैं
हवाएँ भी रूककर किनारा देती हैं

शेर जब-जब तुझे याद करते हैं
तब मुझे शायरी सहारा देती हैं

निमिशा कुर्रे

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