तुम्हें सोच रहा हूं मैं हरपल,
तुम्हें चाह रहा हूं मैं हरदम,
तुम्हें देख रहा हूं मैं हर नजर,
तुम्हें महसूस कर रहा हूं मैं हर पहर,
ख़्याल ये तुम्हारा मुझमें गुल गया है इस कदर,
की हक़ीक़त से वाक़िफ होना अब बनता ही नहीं,
नींद भी तुम्हारी सोया हूं मैं, की दिन हो या रात,
जागना तो अब बनता ही नहीं,
नाम तुम्हारा जुबां पर,
चेहरा निगाहों में और तुम मेरी बाहों में,
कुछ यूं रूबरू तुम मेरे रहो, की फिर कोई आरज़ू ना रहे,
ये रंग यूंही जमा रहे, ये समा यूंही बना रहे,
सुबह हो या शाम या दिन या रात, हर वक्त, हरपल, हरदम,
हमदम, साथ तुम्हारा बना रहे।
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