Nilam   (©Nilam)
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Every word which can't be said, can be written.
Joined 17 October 2020


Every word which can't be said, can be written.
Joined 17 October 2020
18 FEB 2023 AT 12:40

देवों के देव है महेश्वर
शिव शंकर मंगलकारी
मस्तक पर चंद्रमा विराजे
नीलकंठ है विषधारी
उमापती त्रिभुवन के स्वामी
अर्धनारीश्वर त्रिपुरारि
तेरे शरण खडा मै सेवक
दया करो हे त्रिनेत्रधारी
आदिदेव तुम भवभयहारी
वज्रहस्त शेषनाग धारी
तुम बिन कोई नाथ न मेरा
अरज सुनो भोले भंडारी

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17 JAN 2023 AT 20:14

खता-ए-इश्क, वो आँखों से बार बार करते है
हम उनको ज़ुल्फ़ों के घेरों में गिरफ्तार करते है

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5 OCT 2022 AT 8:31

अच्छाई और बुराई
दोनो शामिल मेरे अंदर।
मैं अच्छाई चुनती हूँ,
बुराई विचलित करे निरंतर।

जब जब हावी होना चाहे,
मुझपे काम, क्रोध और मत्सर।
मैं राम नाम जपती हूँ,
बुरे के रावणका दहन कर।

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17 JUN 2022 AT 14:24

*मन का द्वंद्व*

मेरे मन का द्वंद्व अजब है, कैसे जीता जाये।
चंचल मन ये भटकता रहे, हाथ न मेरे आये।
मेरी झोली, भरी पडी, पर मुझे कभी ना भाये।
जो नसीब से परे, उसीकी चाहत इसे सताये।

कभी बने मन अभेद्य, दुर्धर, अजिंक्य लगता कभी।
पहाड जैसे, दुखसे बहती, धीरज की इक नदी।
कभी लगे है शक्तिहीन, हथियार डाल दे कभी।
आँखो से जख़्मी कर जाये, कोई शिकारी कभी।

श्रेय सफलताओं का क्यूँ बुद्धि को है मिल जाता।
निर्णय कोई गलत हुआ तो, मन दोषी कहलाता।
भावनिक मन और बुद्धि का संतुलन रख पाता।
खुदके मन को जो जीते, वो ही विजयी कहलाता।

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16 MAY 2022 AT 8:23

बुद्ध हमें भी बुद्धी देकर
जीवन का उद्धार करो
राह दिखाओ उजियारे की
अँधियारे को पार करो

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6 MAY 2022 AT 23:08

परदेसी कब ठहरें हैं, आते और जाते हैं
जाते जाते दिल का एक हिस्सा ले जाते हैं

दो पल का साथ सही पर जन्मों के धागे हैं
दो पल पर न्योछावर ये मासूम निगाहे हैं
दो पल के रहबर बनके दिलपर छा जाते हैं
जाते जाते दिल का एक हिस्सा ले जाते हैं

गुमनाम हैं मंज़िल लेकीन काफ़िला सुहाना हैं
यादों के साये में जीवन अब हमे बिताना हैं
क्यू चंद सुखो के बदले, लाखो गम दे जाते हैं
जाते जाते दिल का एक हिस्सा ले जाते हैं

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2 MAY 2022 AT 10:15

उससे ही मेरे दिनरात हैं, इक वो सुकून की बात हैं
उससे हैं रौशन मेरे दो जहान, वो ही मेरी क़ायनात हैं

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28 APR 2022 AT 10:26

इश्क़-ए-मज़हब नहीं रहा, इश़्क-ए-रवायत नहीं रहीं
नफ़रत भरी पड़ी हर दिलमें, अब मोहब्बत नहीं रहीं

लाख हुनर सही इन्सानों में, इन्सानियत नहीं रहीं
मन्नत है हर एक शख़्स को, पर इबादत नहीं रहीं

इसी लिए हर रिश्तें में फ़ासले नज़र आते हैं
जज़्बातों को खुलकर कहने की आदत नहीं रहीं

उँचे मकाम को छुने में सब हैं ऐसे मशगूल
बैठ बुज़ुर्गो संग हसने की फ़ुरसत नहीं रहीं

पत्थर के दिल हुए हैं यहाँ, अब मुरव्वत नहीं रहीं
दौर हैं जिस्मानी चाहत का, रुह से रग़बत नहीं रहीं

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26 APR 2022 AT 20:22

ये उदासी का मंज़र देखा नहीं जाता
दिल यूँ बना हैं बंजर देखा नहीं जाता

न्यौता दिया था यारों मैंने ही आँधियों को
तो क्यूँ अब ये बवंडर देखा नहीं जाता

लाखों ज़ख्म हमने चुपचाप सह लिये हैं
पर उन के हाथ खंजर देखा नहीं जाता

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26 APR 2022 AT 10:16

ये फ़ितूर-ए-आशिकी हद से गुजरनी चाहिए
दिलजलों के दिल में शम-ए-इश़्क जलनी चाहिए
वो हैं पत्थर दिल तो फिर भी छोड़ ना तू कोशिशें
इश्क़ कर ऐसा की चट्टानें पिघलनी चाहिए

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