बिखरी हुई रातों के पहलू में उजाला है
काँटों ने ही तो खिलते गुलशन को सम्भाला है
आधा है ये ख़ाली तो, रोता है मेरे दिल क्यों
तू देख भरा आधा, जीवन का पियाला है
हम सोच के निकले थे, फूलों का सफ़र है ये
अंजाम-ए-मोहब्बत में क्यों पाँव में छाला है
हँस के गले मिलते हैं, फिर ज़हर उगलते हैं,
अस्तीन के सापों से, पड़ता रहा पाला है
ये हौसला नीलम का, तू आज़मा ले चाहे
जीवन के तपिश से इस हीरे को निकाला है-
मेरा लेखन जीवन, प्रेम और मन की जटिलताओं को समझने की यात्रा है।... read more
दिल की वीरानियों में, सिर्फ़ बसती हैं यादें
ज़हर घोलें रगों में, ऐसे डसती हैं यादें
थक गई मैं बुलाकर, तुम न आए कभी भी
बिन बुलाए ही जाने, क्यूँ बरसती हैं यादें
शाम ढलते उदासी, रक्स करती है दिल में
थामकर हाथ मेरा, साथ हँसती हैं यादें
तुझसे क़ुर्बत के सपने, भी हैं कितने महंगे
शुक्र यादों का है जो, इतनी सस्ती हैं यादें
जड़ से इनको मिटा दूँ, रोज़ मैं सोचती हूँ
सोचूँ उतना ही अंदर, और धँसती हैं यादें
लुत्फ़ यादों का चखना, इक दफ़ा आ गया तो
फिर न छूटे कभी वो, मय-परस्ती हैं यादें-
भीड़ का हिस्सा न था, पर भीड़ में चलता रहा
क्यूँकि तन्हाई का डर, दिल में सदा पलता रहा
रिश्तों की फ़रमाइशें लिखती रहीं मेरा वजूद
मैं भी हर किरदार के साँचे में फिर ढलता रहा
साँस भी लूँ तो चुभन महसूस होती थी मुझे
सीने में यादों का नश्तर इस तरह खलता रहा-
जब अना का नशा उतर आया
सुबह का भूला शाम घर आया
क्या हक़ीक़त है, क्या छलावा है
धुंध हटते ही सब नज़र आया-
उन्होंने...
मेरी सहनशीलता को सौंदर्य समझकर
दीवार पर टाँग दिया।
और
मेरी उदासी को...
दीवारों की सीलन मानकर
छुपा दिया रंगाई की परतों तले।
वो समझे ही नहीं…
जहाँ भीतरी मरम्मत की ज़रूरत हो,
वहाँ सिर्फ़ पुताई काम नहीं आती।
वक़्त के साथ दरारे और गहरी होती है...
और एक दिन घर ढह जाता है।-
ख़याले दिल को लफ़्ज का ज़रिया नहीं मिलता
अश'आर कई मिलते हैं... मतला नहीं मिलता-
नर्म सी, उजली सी, विश्वास की डोर...
जिसे थामा था मैंने।
और हर मोड़ पर उसी से बँधी रही,
कभी उम्मीदों से... तो कभी आदत से।
मैं थामे रही… इस भ्रम में कि शायद,
मैं ही उसका सिरा हूँ।
पर अब, न जाने क्यों उस पर घुटन की गाँठें उग आई हैं,
जिनसे रिश्ते सुलझते नहीं, बस कसते चले जाते हों।
अब समझ आता है ...
कुछ डोरियाँ हमें बाँधती नहीं,
बस हमें उलझाए रखती हैं।-
फ़क़त इश़्क ही तो ख़ता है हमारी
दीगर को जो सौंपी थी खुशियों की चाबी
तभी तो खुशी लापता है हमारी-
नक़्श यादों के मिटाए न गए
ज़ख़्म गहरे थे भुलाए न गए
डोर रिश्ते की बनी जब फंदा
फिर त'अल्लुक वो निभाए न गए
प्यार शिद्दत से किया कुछ ऐसा
दर्द दामन से छुड़ाए न गए
राह सच की जो चुनी थी हमने
झूठे किरदार निभाए न गए
हम तो जाते ही गए पास उनके
फ़ासले फिर भी मिटाए न गए
हमको भी देख कोई जीता था
इसलिए अश्क बहाए न गए
उनके ही रंग में रंगे ऐसे
के वजूद अपने बचाए न गए-
सुना है तुम्हें भी मोहब्बत हुई थी
त'अल्लुक़ था या कोई ग़फ़लत हुई थी
मोहब्बत का आग़ाज़ तो था सुहाना
मगर आगे जाकर मुसीबत हुई थी
हम अपने ही पिंजरे में जकड़े हुए थे
बड़ी मुश्क़िलों से ज़मानत हुई थी
तेरे घर में ख़ुशियाँ ठहरती भी कैसे
तुम्हें दर्द-ए-दिल की जो आदत हुई थी
मैं चुपचाप सहती हूँ ये देखकर ही
तेरी जख़्म देने की हिम्मत हुई थी
समझ दुनिया-दारी की आने से पहले
हमें भी वो शफ़्फ़ाफ़ चाहत हुई थी-