19 APR 2018 AT 23:50

चौखट पर बैठी शाम,
है रात के इंतज़ार में,
बीत रही है क्षण-क्षण,
धूप-छांव के व्यापार में।

कितनी अधूरी है,
न निशा, न सहर,
डूबते सूरज संग,
है डूबती पहर।

कितने ही रुप हैं,
कहीं चंचल मधुर,
कहीं ग़मगीन सी,
थोड़ी उत्सुक आतुर।

बदलती रंग,
सिंदूरी लाल,
ज्यों लगाए कोई,
रंग गुलाल।

खो सी रही,
बीते जैसे बेसुध-बेनाम,
रात के इंतज़ार में,
चौखट पर बैठी शाम।।

- Nikki Prabha