कीर्तिमान नए गढ़ते जाना
उन्नत हो चढ़ते जाना,
इनसे ही सीखा है हमने
आगे आगे बढ़ते जाना।
अग्नि ज्वाल सा दह जाना,
निर्मल जल सा बह जाना,
इनसे ही सीखा है हमने,
पर पीड़ा को ख़ुद सह जाना।
अज्ञान छाँट सको, छाँटो,
मुस्कानों से तुम ग़म काटो,
इनसे ही सीखा है हमने,
प्रेम भाव मिलकर बाँटो।
लक्ष्य पाने की आस को,
प्रयासों के अहसास को,
इनसे ही सीखा है हमने,
पा जाने के विश्वास को।
इस गुरुकुल का महताब हैं ये,
सद सीखों का आफ़ताब हैं ये,
इनसे ही सीखा है हमने,
एक ज्ञान ज़मी शादाब हैं ये।।-
Editor & Creative writer at The Modern poets ... read more
"सजदे में सिर झुकता है हर सैनिक के सम्मान में,
आबाद हिन्द की आज़ादी इनके दम से आज जहान में"-
जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना,
कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना?-
होना तय है किसी अक्स में इश्क़ का वजूद तभी,
उदास आँखे लिए चेहरे पे मुस्कानें बिखेरे जो कभी-
बख्शे हैं जो वक़्त ने चंद लम्हें नायाब से,
बिखर न जाएं कहीं, फुर्सत की किताब से,
ए वक़्त! मेरे हिसाब से तू भी तो चल दो घड़ी
चलना है फिर हमको ताउम्र तेरे हिसाब से,
अक़्स की तहों तक मुझको सुकूं दे मौला,
इस शख्स को मतलब नहीं बाहरी खिताब से,
मन भरकर रो न सके, मन भरना तो लाज़िम है
आँखों में यूँ ही नहीं अश्क भरे हैं बेहिसाब से,
खुद सवालों की गिरफ़्त में बंदी है क़िरदार मेरा,
इसलिए न टूटे जकड़न, तेरे किसी जवाब से।
© NikkiMahar (Writeside)
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मोहब्बत के सलीकों में,
दायरे ला नहीं सकती,
समझना है जो समझो तुम,
मैं समझा नहीं सकती।।
चुभन लेकर इक खालीपन,
मेरे अंदर भी बजता है,
समेटे हूँ मैं भीतर ही,
जुबां पर ला नहीं सकती।।
उमीदें साथ होने की,
कहीं कम तो नहीं लेकिन,
दूर हूँ भी नहीं लेकिन
पास बुला भी नहीं सकती।।
कितने तुम ज़रुरी हो,
बता ये भी नहीं सकती,
और उल्फत कितनी है तुमसे,
जता वो भी नहीं सकती।।
तुझको मायूस जब देखूँ,
आँख मेरी भी भरती है,
तेरे ज़ख्मों को सहलाऊँ;
दवा पर कर नहीं सकती।।
अजब ही दुनियादारी के
झमेले हैं मेरे हमदम,
अपनी मर्जी मैं तुझको
गले भी लग नहीं सकती।।-
सैलाब दर्द का आँसुओं संग बहना सिखाता है,
दायरा उम्र का सब कुछ सहना सिखाता है,
जब चीख़ें बाहर आने से परहेज़ करती हैं,
अंतस तब कलम कागज़ से सब कहना सिखाता है।
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