कल भी अकेली थी मैं आज भी अकेली हूॅं,
साथ चलती इस भीड़ में, मैं संग तेरे भी अकेली हूॅं,
लम्हा-लम्हा तूने चाहत दी मैं तन गयी कि अब तेरी हूॅं,
पर किस्मत मुझसे कह रहीं और साबित उसने कर दिया
मैं कल भी अकेली थी मैं आज भी अकेली हूॅं,
चलती हुई इस भीड़ में भी, मैं संग तेरे भी अकेली हूॅं।
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शिकायतें तो तमाम कैद है एक बक्से में ऐ जिंदगी तुझसे...
पर अब नुमाइशें लगाना छोड़ चुकी हूं मैं।-
बिन बुलाए मेहमानों की तरह तुम क्यूं चले आते हो,
हो खुशी जहां, वहां बाहें फैलाए तुम क्यूं इठलाते हो,
दर्द, दर्द, दर्द और बस दर्द अब सहा नहीं जाता ऐ दर्द,
तुम उम्र भर का हिसाब कर
मुझसे दूर कहीं चले क्यूं नहीं जाते हो।-
सिर्फ शब्द नहीं जान है तू
एक एहसास, प्यार, दुलार, मेरी पहचान है तू ,
होती तुझसे ही मैं पूरी हूॅं
मेरी कविताओं का सार है तू ,
मॉं मैं माटी की गुड़िया
उसमें चलती सांस है तू।
ईश्वर, अल्लाह भी पूजें हैं तुझे
एक बेटी, बहन, बहू, इस संसार का आधार है तू,
चलती ये दुनिया तुझसे ही
मेरे मंदिर का भगवान है तू,
मॉं मैं सपनों का बवंडर
उसमें बसता आराम है तू।
बच्चे की चोट पर मरहम, भूखे को मिली रोटी,
आंगन की धूप, सांवन की फुहार,
ममता का आंचल है तू,
बेटी मैं तेरी, मेरी मॉं है तू,
मॉं मैं उलझनों भरी पतंग
उसकी सुलझती डोर है तू।
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संवरने लगी थी मैं तेरी आहट से ही,
तूने पास आकर और संवार दिया...
ख़ामोश रहकर बस मंजिल तक था पहुंचना मुझे,
और तूने साहिब, जिंदगी के सफ़र का मतलब समझा दिया।-
हलक भी भर गया, आँखें भी भारी हैं,
सहनें मेरे आंसुओं का बोझ, अब मेरा तकिया भी राजी़ है,
बस यारों कोई जरा वजह और बता दो,
बस कोई जरा वजह और बता दो.....
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एक मुलाकात हर रात....
अब तुमने डेट के लिए पूछ ही लिया है तो एक कप कॉफी जरूर पिला दो, याद तो होगी न तुम्हें वो कॉफी और चाय.. हा.. हा..😂वो फीकी चाय और ठण्डी कॉफी की चुस्कियाँ लेते- लेते तुमने मेरा सारा अतीत जान लिया था.. वो अतीत जिसकी परछाई भी मुझे उस अँधेरी कालकोठरी में ले जाती थी जहाँ न जाने कितना वक्त मैंने उसके वापस आने की झूठी उम्मीद में उन अँधेरी, जागती, रोती, बिलखती याँदों के साथ बिता दिया था। पर तुमको अपना अतीत बताने में मुझे जरा भी डर नहीं लगा, मैं रोई नहीं.. मैं चुप नहीं हुई.. बेखौफ सब बोलती गयी तुमको, जैसे तुम बारिश बनकर आये थे मेरे अतीत की स्याही मिटाने.. मेरी जिंदगी की किताब को फिर से कोरा बनाने। खुश थी मैं.. ये जो भी हो रहा था उससे खुश थी मैं.. (मुझे वर्क नहीं पड़ता तुम्हारे अतीत से, वो जो भी था अतीत था तुम्हारा जो बीत गया, उसे भूलना बेहतर होगा.. और ये जो हो रहा है ये वर्तमान है तुम्हार, यानी मैं.. मैं वर्तमान हूँ तुम्हारा।) ये बातों ही बातों में क्या कह गये थे तुम मैं सोचती ही रही रास्ते भर, और मेरी रात में तन्हाई के लम्हों में तुम्हारे शब्दों ने जो रूप लिया मेरी कलम से..
उसे शायद तुम सुनना चाहते थे और मैं कहना चाहती थी...-
एक मुलाकात हर रात....
मौसम ने अचानक से ऐसी करवट ली जैसे इतने दिनों से बस इसी लम्हें का इंतजार हो उसे। और बरस पड़ा हमपर वो बादलों में छिपा इंसान बारिश के रूप में.. बारिश! हाँ बारिश ही तो थी जो हमारी हर मुलाकात की साक्षी बनी। वैसे तो बारिश को लेकर बहुत- सी कविताएँ लिख चुकी थी मैं, पर उस वक्त कुछ लिखने से ज्यादा उस बारिश की बूंदों और उस तरसती मिट्टी की मुलाकात को निहारना ज्यादा बेहतर लगा मुझे, ठीक वैसे ही जैसे बारिश हम दोनों की मुलाकात को निहार रहा थी। तो काँलेज में ही एक जगह खोज कर खड़े हो गये हम। मुँह को भिगोती उन फुहारों में कुछ अलग ही बात थी उस दिन.. उस एहसास को और करीब से महसूस करने के लिए मैं थोड़ा आगे बढ़कर हाथों को उन हल्की- हल्की बौछारों में भिगोने लगी जो काँलेज की दीवारों से टकरातें हुए उस तरसती मिट्टी में विलीन हुए जा रहीं थी। चुप्पी को तोड़ते हुए तुमने मज़ाकिया अंदाज में बोलना शुरू किया..लगता है बारिश के साथ खेलना काफी पसंद है तुम्हें, हाँ जी.. बहुत पसंद है.. मैं तो आज भी बारिश के पानी में अपनी कागज की नाव चलाकर खुद को अमीर महसूस करती हूँ😂, अच्छा आगे की बातें चलते- चलते करें, क्यूँ घर जाना है क्या तुम्हें, अरे नहीं, फिर.., मेरा मतलब कुछ खाने चलोगी मेरे साथ? यहाँ काँलेज के सामने वाले रेस्तरां में काफी अच्छा खाना मिलता है.. और अब तो बारिश की भी इजाज़त मिल गयी है😁....-
एक मुलाकात हर रात....
सितम्बर का महीना था, आसमान में खिलखिलाती धूप भी थी, पूरे काँलेज में बच्चें चिड़ियों की तरह चहक रहें थे और मैं भी उस भीड़ में बाकी बच्चों के साथ एडमिशन प्रोसेस में लगी थी। कभी इस आफिस जाना कभी उस टीचर के साइन करवाना.. और आखिरकार इतने दिनों की मशक्कत के बाद मैंने चैन की सांस ली। पानी पीने वाटर फिल्टर के पास गयी तो इस बार तुम पहले से वहाँ थे.. ओह तुम.. लगता है हो गया आज तो एडमिशन, तुमने हँसते हुए मुझसे पूछा था, हाँ जी हो गया😄 वैसे तुम्हें कैसे पता? अभी तो मैंने तुम्हें बताया भी नहीं, वो तुमने मुझे HOD सर के आफिस के सामने नहीं बुलाया न और साथ में तुम्हारे चेहरे की खिलखिलाती मुस्कुराहट से साफ जाहिर हो रहा है😄, हा.. हा.. सही पहचाना... एडमिशन की खुशी में पार्टी लेने देने की बात हम कर ही रहे थे कि अचानक से मौसम ने करवट ली....-
एक मुलाकात हर रात....
😂😂😂मैं सोच ही रही थी, क्या सोच रही थी तुम जरा मुझे भी बताओ, मैं सोच रही थी कि अब तक लड़का नम्बर पर कैसे नही आया😜, अरे- अरे नहीं जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं है.. मैं तो बस, मैं तो बस क्या😂, वो invitation की बात आयी बस इसलिए मांगा नम्बर.. तुम्हें नही देना तो कोई बात नहीं,😂मजाक कर रही थी मैं तो बस.. ले लो नम्बर कोई दिक्कत नही मुझे😄, नहीं.. अब नही चाहिए..वरना तुम मुझे बाकी लड़को की तरह ही समझोगीं जोकि मैं नही चाहता, अच्छा जी.. चलो कोई बात नहीं.. अपना ही नम्बर दे दो मैं तो ले लुंगी😂।
इसके बाद हमारी चंद मिनटों वाली बातें रात- रात भर होने वाली मुलाकातों में कब तब्दील हो गयी पता ही नही चला... लगता था जैसे कान्हाँ जी भेजा है तुम्हें मुझे मेरी अंधेरी, तन्हाई से भरी जिंदगी से उबारने। अच्छा लगता था मुझे तुमसे यूँ रातों में बातों का सिलसिला... मेरी बेरंग पड़ी जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे तुम। और फिर हुई हमारी वो मुलाकात जिसका इंतजार बादलों में छिपे उस इंसान को भी था और जिसने मुझे भी एहसास कराया कि तुम मेरे दिल में वो जगह पाने लगे थे जहाँ के दरवाजों पर मैंने ताला लगाकर चाबी फैक दी थी...-