Nikita Saxena   (Shrenik)
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Love to express by writing
Joined 16 August 2017


Love to express by writing
Joined 16 August 2017
13 APR AT 1:05

वादा है मेरा.. वापस आऊँगा तुम्हारे पास…
बस उस दिन तुम अपनी पेशानी के साथ गोद भी भरी रखना
उस दिन मेरे तुम पे सारे हक़ ख़त्म हो जाएँगे
उस दिन तुम्हारी यादों के साये मुझ से दूर हो जाएँगे
मैं वापस आऊँगा मेरी जान की नन्ही सी जान को गले लगाने
उस एक स्पर्श से मुझ में जो तुम्हारा है वो सब धुल जाएगा
कहीं कोई कड़वाहट रह जाये, तो उसकी प्यारी आवाज़ में सब घुल जाएगा
मैं वापस आऊँगा एक आख़िरी बार तुम्हें खुश देखने
उन सपनों को सच होते जो तुम ने देखे थे
तो क्या!! के वो ख़्वाब तुम किसी और के साथ जी रही हो
वादा है मेरा.. वापस आऊँगा मैं तुम्हारे पास
एक जाना पहचाना अजनबी बन जाने के लिए!!

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12 APR AT 0:36

हम इंसान भी तो किताबों जैसे ही हैं
कोई हमे ऊपरी तह से पढ़ के आगे बढ़ जाता है
कोई हमारी कहानी के सिर्फ़ खूबसूरत लम्हे जीना चाहता है
कोई कुछ ऐसे पन्ने पलट देता है जो बड़े बेरहम और दर्द भरे होते हैं
कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो ख़ुद को उस किताब में ढूँढते हैं
और कुछ ऐसे मिलते हैं जो उस किताब का ना बिछड़ने वाला हिस्सा बन जाते है

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19 MAR AT 19:54


लोग कहते हैं ज़िंदगी बड़ी खूबसूरत है मुस्कुराते हुए बितानी चाहिए
ये कोई क्यों नहीं बताता जनाब..
ज़िंदगी के कड़वे सच कई बार सबक़ सिखाने को रुला दिया करते हैं

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30 JAN AT 10:57

अपना ही मसला ना संभला हम से
यूँ तो ना जाने कितनों के काम आ गये
ख़ुद की बदी में साथ देने एक दोस्त नहीं है पास
दूसरों के घर बसाने मेरे ज़हन में कितने नाम आ गये

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15 JAN AT 0:13

तुम्हें चाहना ऐसा था..
जैसे ग़ुलाब को सीने से लगाना
जिसकी महक सासों को ख़ुशनुमा तो कर जाती है
लेकिन अपने काटों से सीने को चुभन से भी भर जाती है

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9 JAN AT 4:28

छोटी बातें जो अब छोटी नहीं रही…
तुम्हारा एक थाली में अपने हाथ से खाना खिलाना
एक ग़्लास से अपना जूठा पानी पिलाना
निवाला ख़ुद नाम का खाना और मेरा गसा बड़ा बनाना
सुबह उठ कर भीगे बालों को झटक के मुझे जगाना
जो जाऊ कभी दूर तुम से तो अपनी ज़ुल्फ़ों की गिरफ़्त में बांध लाना
कमीज़ मेरी साफ़ रखना लेकिन ख़ुद तेरे होठों की लाली का दाग लगाना
मेरे उतरे हुए कपड़ों से तेरा ख़ुद को मेरी ख़ुशबू में समेट लेना
रोज़ दफ्तर जाने को देर कर देना और ख़ुद मेरा सामान हाथ लाना
भूल जाता था गाड़ी की चाभी जो पीछे चुपके से उसे संभालना
और फिर चाभी छुपा के मुझे तेरा यूँ सताना
मेरा गर्मजोश होना और तेरा मुझे अपनी अदाओं से ठंडा कर जाना
नाराज़गी अगर हद पार कर जाए तो तेरा मुझे गले लगा के मनाना
कभी परेशान हूँ तो अपनी बाहों की गर्मी से मुझे पिघलना
दिमाग़ मेरा जो बग़ावत करे तो अपनी तेज़ धड़कनों से मुझे सम्भालना
छोटी बातें जो अब छोटी नहीं रही..
हम तुम्हारे ना हुए तुम हमारी ना रहीं..
एक हर्फ़ जो अधूरा रह गया दो थे तो लोग मोहब्बत में चूर लेकिन उनकी कहानी प्रेम कहानी ना रही!!

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8 JAN AT 22:16

सोच कर देखो अजीब लगेगा… लेकिन ये सच है जो मैंने लिखा है
उस एक इंसान के लिए जहां भर के जज़्बात उमड़े थे कभी इस दिल में
जो अब इसका हिस्सा तो क्या एक भूल बिसरा क़िस्सा भी ना रहा है

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4 JAN AT 3:11

मेरे लिये तो तुम्हारा हाथ पकड़ लेना ही प्यार था
तुम्हें निहारते हुए पकड़े जाना ही मेरा इक़रार था
क्यों लगा तुम्हें मैं किसी और से जलता था
नाराज़गी मेरी तुम से नहीं ख़ुद से हुआ करती थी
के मैं क्यों इतना काबिल नहीं तुम्हारे
मेरे साथ चलते तुम्हारी नज़र किसी और पे ना ठहरे
अगर कोई मेरे पहले भी जगह ले तुम्हारे दिल में
तो तुम्हारा आख़िरी सहारा मैं ही बना रहूँ
इस बात की उदासी नहीं थी तुम्हें किसी और के साथ देखा करता था
तकलीफ़ इस बात से थी तुम्हें कितना भी देख लू मन कहा भरता था
तुम परेशान हुआ करती थी के मैं रश्क़ करता था..
उन क़िस्मत वालों से जिन्हें बिन माँगे तुम्हारा वक़्त मिल जया करता था
और मैं तुम्हें एक झलक देखने के लिए घंटों इंतज़ार में बिताया करता था
दिल की बात बताने में कमज़ोर हमेशा से ही था
प्यार को ग़ुस्से से और ग़ुस्से को चुप्पी से छुपाया करता था
कोसता था ख़ुद को और गहरी चोटे लगाया करता था
वो निशान तुम्हारे लिए नहीं मेरी याद के लिए हुआ करते थे
जिससे याद रहे के मेरी किस बात से तुम्हारे आँसू बहा करते थे
तुम भले ना याद करो मुझे मैं हर साँस पे नाम तुम्हारा लेना चाहता हूँ
अब अपनी ज़िंदगी तुम्हारे बिना ही सही बस ख़ुशी से जीना चाहता हूँ

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21 DEC 2023 AT 0:07

सोचता हूँ कभी-कभी मैं… कितना थक जाती होगी तुम रातों में!!
बड़ा लंबा सफ़र तय करना पड़ता है तुम्हें रोज़ रात मेरे सपनों में आने के लिए!!

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25 NOV 2023 AT 15:38

अब रिश्तों से उम्मीद छोड़ चुका हूँ मैं
ऐसा भी नहीं है कि अपनों से मुँह मोड़ चुका हूँ मैं
लेकिन ये सच ज़रूर समझ गया हूँ कि
कोई दूर तक साथ नहीं चलता
अब शिकायतें और रंज नहीं हैं मेरे दिल में
घरवाले और दोस्त डरने लगे हैं मेरे इस बदले हुए रूप से
लेकिन ये भी तो सच है ना के
अपना साया भी साथ छोड़ देता है जब दूर चले जाओ धूप से
मैं किसी से नाराज़ नहीं हूँ बस सच अपना चुका हूँ
सब पूछते हैं क्या तुम्हें बीते वक़्त की याद नहीं आती
मैं चुप रह जाता हूँ मन ही मन सोच कर मुस्कराता हूँ
अगर हाँ कहूँगा तो क्या बीता वक़्त बिताने को वापस मिल जाएगा
फिर सोचता हूँ कि सच कह दूँगा तो क्या बदल जाएगा
मैं बीती यादों से अब दहलता भी नहीं और बहलता भी नहीं हूँ
अगर दिमाग़ में कुछ पुराना याद आ जाए तो बस उसे चलने देता हूँ
मैं ज़िंदगी से ठहराव चाहता हूँ यादों के समंदर में डूबना नहीं बहना चाहता हूँ
कोई अपनाकर हाल पूछता है तुम्हें चुप रह जाता हूँ
अपनी हाल की ज़िंदगी का चल रहा सच में उन्हें नहीं बताता हूँ
मैं नहीं चाहता के हालातों और समझौतों की वजह से रिश्तों में खटास आए
इसलिए सोचता हूँ कि अपनी उदासी को अकेले ही जिया जाए
मैं जानता हूँ दुख बाँटने से कम होता है खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं
लेकिन अब एक लंबा अरसा मैं ख़ुद के साथ तनहा बिता चुका हूँ
तो सारी बातें सारे दुख सारी खुशियाँ मैं ख़ुद मैं ही समेट लेता हूँ
मैंने अभी तक ख़ुद का हाथ थामा नहीं है
जिस दिन ख़ुद का हाथ थाम लूँगा फिर किसी और की ज़रूरत नहीं होगी
यह बात मैंने ज़िंदगी में देर से ज़रूर सीखी लेकिन
अब जो सीख गया हूँ तो किसी और की कमी महसूस नहीं होगी

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