खुशनुमा सी ज़िन्दगी ,एक जंग का नाम हो गयी ।
एक मुश्किल दूर हुई ,तो नयी तमाम हो गयी।
लाख कोशिशें की ,ज़िन्दगी को यूँ सवारने की।
मंजिल भी न मिली और सफर की शाम हो गयी।
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रात भर बुनियाद घर की सिसकियां लेती रही
कोई तो रोया है इस दीवार से लगकर बहुत।-
हाल -ए-दिल न पूछो उसका
अपनी मुस्कुराहट से.....
गमों को छिपाये रखा है।।
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तुझे संभल कर चलना है
काँटों की राहें बहुत यहाँ।
तेरे मन का है यह भ्रम
खड़ा है काफिला पीछे यहाँ।
चाहिए सबको प्यार अपनत्व
पर कोई नहीं है निःस्वार्थ यहाँ।-
कुछ नींद आ जाए हमको भी
ऐसी अब रात नहीं मिलती ,
हमको भी कुछ खुशी मिल जाए
ऐसी अब बात नहीं मिलती।।
सावन आने पर मुझ पर भी
बरसता है पानी, लेकिन....
मन की ज़मीन तर हो जाए
ऐसी अब बरसात नहीं मिलती।।-
दर्द के कुछ बंजारे हमको
ढूंढ़ रहे थे बस्ती - बस्ती ,
हमने घर के दरवाजे पर
लफ्ज़-ए-आवारा लिख डाला।
दिन की उदासी लेकर हमने
बातें शाम से की ,
काली रात के माथे पर
तब उजियारा लिख डाला।-
मेरे भी कुछ जज़्बात है ,
मेरे भी कुछ ख्वाब है।
कुछ दिल में छुपा बैठी हूं,
कुछ आसुआे में बहा बैठी हूं।
फिर भी....
एक सपना संजोए बैठी हूं,
खुशियों के इंतजार में...
मेरे भी कुछ जज्बात है,
मेरे भी कुछ ख्वाब है।
है चारों ओर एक हलचल सी,
पर हूं एकदम अकेली सी।
फिर भी...
है उमीद अंधेरा मिट जाने का,
खुशियों की सुबह के इंतजार में...
मेरे भी कुछ जज्बात है,
मेरे भी कुछ ख्वाब है।-
तेरी खुशमिजाजी के कायल क्या हुये
तूने तो हमारी ख़ुशी ही छीन ली ..!!
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तुझे पाया तो ऐसा लगा मानो
मेरे खाली हाथों में खुदा ने पूरा जहाँ दे दिया ..!!-