देर तक घुरती रही निगाहें उस अजनबी को
वो अजनबी कभी हमारा था
देर तक घुरती रही निगाहें उस अजनबी को
और सांसें जैसे बर्फ सी थम गई हो
आंखें जैसे तुम पर रुक गई हो
जुबां पर शब्द तो थे मगर एक हर्फ भी ना निकला
कुछ यादें थी उस चेहरे में
कुछ भूली बिसरी बातें थी
उंगलियों के पोर भी वही थे
जिनमें अधूरे कुछ वादे थे
चेहरे पर शिकंज थी और आंखों में
खुद से जुड़े हुए कुछ शिकवे थे
वो अजनबी जाना पहचाना था
वो जाना पहचाना था-
गर याद आऊं तो चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना
गर दिल को चुभे कोई बात ,तो आंखों में उम्मीद और
जो तुम तक कभी पहुंचे नहीं ,वो अल्फाज़ याद रखना
मेरी खुशबू को अपने आसमां में आजाद रखना
जो सुखे फूल कभी महके नहीं ,वो संघर्ष याद रखना
मेरी मौहब्बत छोड़ कर
हमारे दरमियान का वो इश्क याद रखना
मैं याद आऊं तो , चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना
यक़ीनन बेहद बेशकीमती थे वो लम्हे,
तुम्हारी सांसो के दरमियान वो मेरे साए,
हम दोनों पर उधार रही उस एक शाम की खनक याद रखना ...
गर जो याद आऊं मैं कभी ,
तो मेरी तमाम बेबसी याद रखना ....
मुसलसल सी वो बात थी,
जिसे तुम कभी समझ ही न पाए ...
कुछ मैं ना कह पाई कुछ तुम ना सुना पाए ...
आंखों के दरमियान वाली हमारी वो एक आखरी मुलाकात याद रखना,
गर जो कभी मैं याद आऊं,
मेरी वो तमाम मज़बूरिया याद रखना ...
आज की दुनिया यक़ीनन अलग होगी तुम्हारी,
कुछ ख्वाब और नए रिश्तों की आहट होगी उनमे,
वो जो चन्द ख़त लिखे थे मेरे नाम के
हो सके तो उन लिखावट की ज़िंदादिली को याद रखना ...
गर जो मैं याद आऊं,
तो मेरी वो पहचान याद रखना ....-
तुम्हारी किस बात पर तुमसे मुलाकात का इंतजार करू
मैं रहू, तुम रहो और बरसात हो
तुम कहो तो तुमसे इश्क वाली बात करूं
किस बात पर तुम्हारा फिर से ऐतबार करूं
झूठे तो तुम भी हो इस जहां में
कहो तो मैं भी तुमसे धोखे वाला प्यार करूं
क्यों खुद को तुम्हारे इश्क में बेजार करूं
और पहले कई दफा रो कर सिखा है मैंने
कहो तो इस बार खामोशी से तुम्हें शर्मसार करूं
किस बात पर तुम्हारा इंतज़ार करूं
क्यों खुद को तुम्हारे ख्यालों से बर्बाद करूं
क्यों ना मैं भी तुमसे
तुम जैसा बर्ताव करूं
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क्या फर्क पड़ता है , तुम्हारे होने या ना होने से
थोड़ा सूकुं सा मिलता था , तुम्हारे साथ होने से
मालूम है किसी की बाहों में हो तुम
किसी के साथ हो तुम , मेरे साथ ना होने के लिए
ये दुरियां काफी नहीं ,मौहब्बत ना होने के लिए
आसमां की ऊंचाई पर तुम हो , ज़मीं की सतह पर मैं हूं
ये जन्म काफी नहीं ,हमें एक होने के लिए
मौहब्बत में नफरत काफी नहीं ,अजनबी होने के लिए
नज़र ना जाने कितनी रातों से जगी है , मेरी अदाएं भी देखो मचल पड़ी है ,रात भर अपनी बाहों में तुम्हें देखने के लिए
मैं सुनती रहूं तुम सुनाते रहो , कभी सच कभी झूठ मुझे यूं ही बहलाते रहो क्या ये काफी नहीं जिंदगी के लिए
अब जो आए हो तो ठहर जाओ यही इस पल में कहीं छिप जाओ और
जाने दो वक्त को दबे पांव
आज तुम
मेरे साथ होने के लिए-
मंजिलें तो बेपरवाह होती है
कौन कहां से चला
उसे खबर कहां होती है
गर अंत में पहुंच भी जाओ उस तक
तो उसे कदर कहां होती है
जो शून्य से चल कर शून्य तक पहुंचे
वही राही तो बदनाम होते हैं
एक उम्र बिता दो उस तक पहुंचने में
और
उसे कहां तुम्हारी पहचान होती है
मंजिलें तो बेपरवाह होती है-
तेरे बगैर तेरे लिए कई दफा रोएं
बात बिझड़न तक पहुंची
तो तुझसे मिलने पर रोएं
एकटक देखी तेरी तस्वीर और
मुस्कुरा कर रोएं
उस रात तेरी ही बातों को
मुजरिम बना कर रोएं
और
हालात को नहीं इस दफा
खुद को तेरी बातों की चुभन
चुभा के रोएं
खुद अपनी मौहब्बत को वो
टूटा आईना दिखा कर रोएं
यूं जो जा रहे हो छोड़कर
बताओ जरा
क्या अब
अगली मुलाकात पर रोएं?
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तेरी झूकी हुई नज़र
बता रही हैं
तूने जुर्म कबूला है
ये उलझी हुई जुल्फ बता रही हैं
इनमें किसका साया है
एकटक तकती है तेरी नज़र उसे इस कदर
तेरी अदा बता रही हैं तूने किसको चाहा है
तेरे जिस्म पर लिखावटे है कुछ इस कदर
कि हर हर्फ को गुमा है अपने अस्तित्व पर
महकता है बदन तेरा इस कदर
कि हर अंग में समा हो फूलों का चमन
तेरी नज़र बयां कर रही है तुझे इश्क है
तुझे इश्क है-
कुछ उसूल है मेरी मौहब्बत में
गर मैं हूं, तेरे साथ
तो दरिया सा हूं
गर नहीं
तो कतरा भी नहीं-
तलाशेंगे वो ,
एक रोज
हर जगह हमें
अपनी मौहब्बत पर
इतना तो यकीन है हमें-
वो जो एक शख्स है मेरे अन्दर
अब मुझसे मिलता नहीं है
मिन्नतें लाख करूं आयतें लाख पढूं
वो अब मेरी एक सुनता नहीं है
ये क्या हश्र करा तुने, मेरे उस शख्स का
वो मरता तो है
मगर वो अब जिंदगी जीता नहीं है
वो जो एक शख्स है मेरे अन्दर
अब मुझसे मिलता नहीं है
जो प्यास थी उसे ,उम्र भर तेरी नज़रों की
ये क्या किया तूने
कि सामने बैठा है तू
और
वो शख्स, तेरी ओर तकता नहींं है
वो जो एक शख्स है मेरे अन्दर
अब मुझसे मिलता नहीं है
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