यादों का मौसम
यादों के मौसम की पहली बारिश हुई है,
कर दिया है अब उसने हमें सताने का आगाज़,
अब यूँ ही भोर से पहले बरस कर आधी रात को जगायेगा,
आधी रात की चाय मुझसे फिर वो बनवायेगा,
वहीँ, हाँ ठीक उस खिड़की के किनारे खिंच लाएगा मुझे,
मेरी मीठी नींद बिगाड़ कर फिर वो घंटों बाते करवाएगा मुझसे,
फिर जब खिड़की से बहार झाँकुंगी तो बूँद बन कर बहाने से चूम जायेगा मुझे,
गालों से रेंगते हुए गले तक पहुंच कर वाष्प हो जायेगा फिर से,
अनगिनत बातों की रेल गाड़ी बन कर धीरे-धीरे यादों के स्टेशन से गुज़रेगी।
अरे देखो! वो आधी रात वाली यादों की चाय पूरी हो चुकी है,
लगता है हमारी नींद उड़ा कर अब उसे नींद आ रही है!-
I write what I feel 😍☺️✌️
रखते शौख कुछ सुनने का और अपने जज़्बात... read more
देश-दुनिया न जाने दुःख की किस देहलीज़ पर खड़ी है,
कि रोज़ अब यहाँ मौत का तमाशा लग रहा है,
देखो हर मरीज़ श्मशान में आँख मिचते ही कैसे राख हो रहा है,
ये कलयुग काल में कोरोनासुर से लड़ाई है,
अब मनुष्य के लिए मुश्किल की घड़ी आयी है,
कीमतें थी पानी की, कि अब हवा की भी लगायी है,
साँसों की ड़ोर जारी रखने के लिए, यहाँ दर-दर भटक रहे मेरे बहन-भाई हैं।
बस भी करदे हे ईश्वर!
चरम तक न पहुंचा यह संकट, हमने यह गुहार लगायी है॥
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देश-दुनिया न जाने दुःख की किस देहलीज़ पर खड़ी है,
कि रोज़ अब यहाँ मौत का तमाशा लग रहा है,
देखो हर मरीज़ श्मशान में आँख मिचते ही कैसे राख हो रहा है,
ये कलयुग काल में कोरोनासुर से लड़ाई है,
अब मनुष्य के लिए मुश्किल की घड़ी आयी है,
कीमतें थी पानी की, कि अब हवा की भी लगायी है,
साँसों की ड़ोर जारी रखने के लिए, यहाँ दर-दर भटक रहे मेरे बहन-भाई हैं।
बस भी करदे हे ईश्वर!
चरम तक न पहुंचा यह संकट, हमने यह गुहार लगायी है॥
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हमारी दहलीज़ पर आये थे वो हमसे हमारा हाल पूछने,
मग़र समझ नहीं आया की हमारा हाल जानने आए थे या खुद का हाल दिखाने?-
हाँ कभी कभी आ जातीं हैं वो भूली बिसरी यादें वापस,
यादें उसी तरह सीने को चीरते हुए जाती हैं,
जैसे पहले तुम्हारे ख्याल, तुम्हारी बातें मेरी रूह को चीरते हुए मुझ में घुल जाया करती थीं,
हाँ अब तकलीफ कुछ ज़्यादा होती है, मगर सुकून है,
इसमें तुम्हारे ना होने के बावजूद तुम्हारे होने का एहसास है,
ज़िन्दजी की किताब के हर एक पन्ने पर नई दास्तां है।
लिख रही हूँ, समेट रही हूँ पल-पल का वाक्य, पल-पल का हिसाब,
तुम्हारे पीछे से तुम्हें खुद से जोड़ कर एक कहानी में ढाल रही हूँ,
हर लम्स का एहसास खोल कर रख दिया है,
हाँ अगर कभी फुर्सत तुम्हें भी मिल जाए तो, इस नाचीज़ की अधूरी कहानी को पढ़ना ज़रूर।
इसमें उन पलों का ज़िक्र है, जब तुम्हें याद करके बिताये, कभी बिना याद बिताये, तो कभी नफरत में बिताए, तो कभी प्यार में फिर एक बार चूर होकर, रो कर बिताये हैं।
संदेशा कुछ अब भी अधुरा है, मेरे हिस्से की कुछ कहानी अब भी अधूरी है।
आगे का नगमा भी तुम तक कभी न कभी पहुंचेगा ज़रूर।
जहां इतनी दफा अलविदा कह चुके हैं, तो एक दफा और सही!-
कमाल हैं वो लोग भी जो प्रेम के देवी देवता राधा कृष्ण को तो पूजते हैं,
लेकिन प्रेम के खिलाफ भी रहते हैं...।-
कभी बातें होंगी, कभी ख़ामोशी होगी,
कभी बिन जवाब के सवालों की बारिशें होंगी,
कभी अज़्माइशें होंगी, कभी हिदायते होंगी
कभी हमारी भी मुलाकातें होंगी,
कभी बातें होंगी, कभी...
मेरी हर कहानी के किस्से में तेरी आदतें होंगी,
मेरी हर गुफ्तगू की शुरुआत तेरे नाम से होगी,
कभी मैं रहूंगी, कभी मेरी परछाई होगी,
तेरी मोहब्बत में हर बार मेरी मीठी सी आज़माइशें होंगी,
कभी बातें होंगी, कभी...
कभी बिन मांगी ख्वाहिशों के बोझ की नींद होगी,
कभी सिर्फ तेरी ही चाहतें होंगी,
कभी एक थाली में खाने की सुकून भरी ज़िन्दगी होगी,
कभी तीखी-मीठी नोकझोक की फुलझड़ी होगी,
कभी बातें होंगी, कभी...
कभी मोहब्बतें-ए-बात सिर्फ निगाहों से होगी,
कभी बिन कहे ही तुम्हे खुद समझनी होगी,
मेरी आरज़ू, हर दुआ तेरे नाम होगी,
हमारे बीच कभी बातें होंगी, कभी ख़ामोशी होगी...॥
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