आओगे जब तुम मेरे अंगना,
मैं कहां भागी जाऊंगी पिया
लाज लगे मोहे सामने तेरे
कहां से ले आऊं जिगरा ओ मेरे
मर जाऊंगी जो तोहे नजर भी मिले
डूब जाऊं जो मुस्कुरा तू दे
एक बार देखूंगी उस कोने की दीवार से
मैं कैसे करूंगी तुझसे प्यार रे पिया
जो तेरी भी हालत ऐसी ही हो
तब कुछ देर हम भागते ही फिरें
तो शायद वो हिम्मत भी करें
कैसा लगेगा तेरी बाहों में पिया
मैं तुझसे नैना मिलाऊंगी कैसे ओ पिया।-
बचपन में सोचता था, ढेर सारी भाषाएँ सीखूँगा
अपने कौशल और लगन पर अटूट विश्वास था
आज भी उसी भाषा में व्यक्त कर रहा हूँ
जिसे सबसे कम सीखा – हिंदी
मेरे लिए भाषा नही, एक सहजता है
भाषा की बाधाओं से दूर का एहसास है
जैसे शब्दों का ना ख़त्म होने वाला पिटारा मिल गया हो
ये मेरे बचपन की भाषा है
हिंदी मैं हूँ और मुझमे हिंदी है.
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There is a stairway to heaven in the balcony of my house!
In the time when I see no meaning, will there be a better world out there!
Had I been a risk taker, I knew there has been always a gate there!
- Nikhil-
काश मेरे कमरे में ये खिड़की न होती।
मैं आसमा में उड़ने के सपने तो न देखता।-
Will you buy some roses sir,
Please buy, you need love
I don't
I need money
These beautiful, red, bright roses
Look dull to me
But when I sell say 15 roses
In return of my life's toughest moments
I feel happy
Its something like being loved
15*10 is 150 (three green 50 Rs note)
I think I love green
But when you buy these roses for each other,
You must be feeling something..
That's why you buy... no?
I want to feel that sir
Green is good, it does not make me feel great,
But it feels okay
Who wants to feel bad, hungry and alienated
I think green is better
Your love is fancy
Your love is unaffordable
I will love green,
Do you have some green roses?-
दो लोगो के बीच प्यार बराबर होना कितना मुश्किल है।
साइंटिफिक भी तो है ना ये।
पन्नें पर खिंची दो रेखाएँ कहाँ बराबर होती है।
बराबर प्यार तो हम अपने वार्डरोब में टंगे सेम फैब्रिक के दो रंग के कपड़ों को भी नही कर पाते|
आज मैं कह ही देती हूँ की मैं तुमसे इस संसार मे सबसे ज्यादा प्यार करती हूं|
मैं भी।
तुम्हारी बेबाकी तुम्हारा हुनर है, पर तुम्हारे उत्तर के कद की तरह आज तुम्हारा प्यार भी छोटा लग रहा है
तुम मुझसे प्यार करते भी हो या नही|-
उलझन है, झूठ बोलना पड़ता है,
हर लफ्ज़, बिना पहिये की गाड़ी धकेल रहा हूँ|
पीड़ा- न समझ पाने और समझे जाने की|
पूंजीवाद में इन्साफ है!
हर रोज,
बाज़ार तय कर देता है, सच्चाई के नकाब का रेट,
तुम अब पुराना वाला सच छोड़ दो,
हम फर्श की चिकनाई बढ़ा देंगे,
गाडी चलती रहेगी|
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सब बदला सा मुझे दिखता, मेरी तो दुनिया तूने बदली
काम ये मेरा कभी न था, ना मंजिल थी कभी मेरी।
आदत जो इश्क की डाली, आज भी इश्क में लिखता हूँ
तुम ज़रिया थी इस मंजिल की, लिखना इश्क है मेरा।
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